पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 105 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p><ol><li><span class=" | <p><ol><li><span class="SansWord">[सम्मत्तणाणजुत्तं]</span> सम्यक्त्व / सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान से युक्त ही; सम्यक्त्व ज्ञान से रहित नहीं । <li><span class="SansWord">[चारित्तं]</span> चारित्र ही; अचारित्र नहीं । <li><span class="SansWord">[रागद्वेष परिहीणं]</span> रागद्वेष से परिहीन ही; रागद्वेष से सहित नहीं । <li><span class="SansWord">[मोक्खस्स हवदि]</span> स्वात्मोपलब्धि-रूप मोक्ष का ही है; शुद्धात्मानुभूति के प्रच्छादक बन्ध का नहीं है । <li><span class="SansWord">[मग्गो]</span> अनन्त ज्ञानादि गुण-रूप अनमोल रत्नों से परिपूर्ण मोक्ष-नगर का मार्ग ही है; अमार्ग नहीं है । <li><span class="SansWord">[भव्वाणं]</span> शुद्धात्म-स्वभाव-रूप व्यक्ति (प्रगटता) की योग्यता सहित भव्यों का ही है; शुद्धात्म-रूप व्यक्ति योग्यता से रहित अभव्यों का नहीं । <li><span class="SansWord">[लद्धबुद्धीणं]</span> निर्विकार स्व-संवेदन ज्ञान-रूप बुद्धी को प्राप्त भव्यों का ही, मिथ्यात्व-रागादि परिणति-रूप विषयानन्द-मय स्व-संवेदन-रूप कुबुद्धियों से सहित का नहीं है; <li>क्षीण-कषाय दशा में शुद्धात्मा की उपलब्धि होने पर ही होता है, कषाय-सहित दशा में अशुद्धात्मा की उपलब्धि रहने पर नहीं होता है, </ol>इसप्रकार यहाँ अन्वय-व्यतिरेक द्वारा आठ प्रकार का नियम दिखाया गया है । अन्वय-व्यतिरेक का स्वरूप कहते हैं । </p> | ||
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<p>वह इसप्रकार -- होने पर होना अन्वय का लक्षण है; नहीं होने पर नहीं होना व्यतिरेक का लक्षण है । वहाँ उदाहरण देते हैं -- निश्चय-व्यवहार रूप मोक्ष का कारण होने पर मोक्ष-रूप कार्य होता है ऐसा विधि-रूप अन्वय कहलाता है; उस कारण का अभाव होने पर मोक्ष-रूप कार्य सम्भव नहीं है, ऐसा निषेध-रूप व्यतिरेक है । उसे ही दृ़ढ करते हैं जिस अग्नि आदि कारण के होने पर जो धूम आदि कार्य होता है तथा उसके अभाव में नहीं होता है -- इसप्रकार धूम आदि उसका कार्य है, उससे भिन्न अग्नि आदि कारण है । -- इसप्रकार कार्य-कारण नियम है ऐसा अभिप्राय है ॥११३॥</p> | <p>वह इसप्रकार -- होने पर होना अन्वय का लक्षण है; नहीं होने पर नहीं होना व्यतिरेक का लक्षण है । वहाँ उदाहरण देते हैं -- निश्चय-व्यवहार रूप मोक्ष का कारण होने पर मोक्ष-रूप कार्य होता है ऐसा विधि-रूप अन्वय कहलाता है; उस कारण का अभाव होने पर मोक्ष-रूप कार्य सम्भव नहीं है, ऐसा निषेध-रूप व्यतिरेक है । उसे ही दृ़ढ करते हैं जिस अग्नि आदि कारण के होने पर जो धूम आदि कार्य होता है तथा उसके अभाव में नहीं होता है -- इसप्रकार धूम आदि उसका कार्य है, उससे भिन्न अग्नि आदि कारण है । -- इसप्रकार कार्य-कारण नियम है ऐसा अभिप्राय है ॥११३॥</p> | ||
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Latest revision as of 13:16, 30 June 2023
- [सम्मत्तणाणजुत्तं] सम्यक्त्व / सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान से युक्त ही; सम्यक्त्व ज्ञान से रहित नहीं ।
- [चारित्तं] चारित्र ही; अचारित्र नहीं ।
- [रागद्वेष परिहीणं] रागद्वेष से परिहीन ही; रागद्वेष से सहित नहीं ।
- [मोक्खस्स हवदि] स्वात्मोपलब्धि-रूप मोक्ष का ही है; शुद्धात्मानुभूति के प्रच्छादक बन्ध का नहीं है ।
- [मग्गो] अनन्त ज्ञानादि गुण-रूप अनमोल रत्नों से परिपूर्ण मोक्ष-नगर का मार्ग ही है; अमार्ग नहीं है ।
- [भव्वाणं] शुद्धात्म-स्वभाव-रूप व्यक्ति (प्रगटता) की योग्यता सहित भव्यों का ही है; शुद्धात्म-रूप व्यक्ति योग्यता से रहित अभव्यों का नहीं ।
- [लद्धबुद्धीणं] निर्विकार स्व-संवेदन ज्ञान-रूप बुद्धी को प्राप्त भव्यों का ही, मिथ्यात्व-रागादि परिणति-रूप विषयानन्द-मय स्व-संवेदन-रूप कुबुद्धियों से सहित का नहीं है;
- क्षीण-कषाय दशा में शुद्धात्मा की उपलब्धि होने पर ही होता है, कषाय-सहित दशा में अशुद्धात्मा की उपलब्धि रहने पर नहीं होता है,
वह इसप्रकार -- होने पर होना अन्वय का लक्षण है; नहीं होने पर नहीं होना व्यतिरेक का लक्षण है । वहाँ उदाहरण देते हैं -- निश्चय-व्यवहार रूप मोक्ष का कारण होने पर मोक्ष-रूप कार्य होता है ऐसा विधि-रूप अन्वय कहलाता है; उस कारण का अभाव होने पर मोक्ष-रूप कार्य सम्भव नहीं है, ऐसा निषेध-रूप व्यतिरेक है । उसे ही दृ़ढ करते हैं जिस अग्नि आदि कारण के होने पर जो धूम आदि कार्य होता है तथा उसके अभाव में नहीं होता है -- इसप्रकार धूम आदि उसका कार्य है, उससे भिन्न अग्नि आदि कारण है । -- इसप्रकार कार्य-कारण नियम है ऐसा अभिप्राय है ॥११३॥