श्रद्धान प्रायश्चित्त: Difference between revisions
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<span class="GRef"> धवला 13/5,4,26/63/3 </span><span class="PrakritText">मिच्छत्तं गंतूण ट्ठियस्स महव्वयाणि घेत्तूण अत्तागम-पयत्थसद्दहणा चेव (सद्दहणं) पायच्छित्तं । </span> = <span class="HindiText">मिथ्यात्व को प्राप्त होकर स्थित हुए जीव के महाव्रतों को स्वीकार कर आप्त आगम और पदार्थों का श्रद्धान करने पर '''श्रद्धान''' नाम का प्रायश्चित्त होता है । </span> <br><span class="GRef">( चारित्रसार/147/2 )</span> <span class="GRef">( अनगारधर्मामृत/7/57)</span> ।</span> | |||
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Latest revision as of 22:35, 17 November 2023
मूलाचार/362 आलोयण पडिकमणं उभय विवेगो तहा विउस्सग्गो । तव छेदो मूलंविय परिहारो, चेव सद्दहणा ।362। = आलोचना,प्रतिक्रममण, तदुभय, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, मूल, परिहार और श्रद्धान ये दश भेद प्रायश्चित्त के हैं ।362।
धवला 13/5,4,26/63/3 मिच्छत्तं गंतूण ट्ठियस्स महव्वयाणि घेत्तूण अत्तागम-पयत्थसद्दहणा चेव (सद्दहणं) पायच्छित्तं । = मिथ्यात्व को प्राप्त होकर स्थित हुए जीव के महाव्रतों को स्वीकार कर आप्त आगम और पदार्थों का श्रद्धान करने पर श्रद्धान नाम का प्रायश्चित्त होता है ।
( चारित्रसार/147/2 ) ( अनगारधर्मामृत/7/57) ।
प्रायश्चित्त के अन्य भेदों को विस्तार से समझने के लिये देखें प्रायश्चित्त - 1।