एकत्ववितर्कवीचार: Difference between revisions
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शुक्लध्यान के दो भेदों में दूसरा भेद । जिस ध्यान में अर्थ, व्यंजन और योगों का संक्रमण परिवर्तन नहीं होता वह एकत्ववितर्कवीचार नाम का शुक्लध्यान होता है । हरिवंशपुराण - 56.54,हरिवंशपुराण - 56.58, 64, 65 यह ध्यान मोहनीय कर्म के नष्ट होने पर, तीन योगों में से किसी एक योग में स्थिर रहने वाले और पूर्वों के ज्ञाता मुनियों के उनकी उपशम या क्षपक श्रेणियों में यथायोग्य रूप से होता है । इससे ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अंतराय कर्मों का विनाश होता है । फलत: कैवल्य की प्राप्ति होती है । महापुराण 21. 87, 184-186