ज्ञाननय: Difference between revisions
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<span class="GRef">श्लोतकवार्तिक/४/१/३३/श्लोक ९६-९७/२८८</span> <span class="SanskritText">सर्वे शब्दनयास्तेन परार्थप्रतिपादने। स्वार्थप्रकाशने मातुरिमे ज्ञाननया: स्थिता:।९६। वैधीयमानवस्त्वंशा: कथ्यन्तेऽर्थ नयाश्च ते। त्रैविध्यं व्यवतिष्ठन्ते प्रधानगुणभावत:।९७।</span>=<span class="HindiText">श्रोताओं के प्रति वाच्य अर्थ का प्रतिपादन करने पर तो सभी नय शब्दनय स्वरूप हैं, और स्वयं अर्थ का ज्ञान करने पर सभी नय स्वार्थप्रकाशी होने से ज्ञाननय हैं।९६। ‘नीयतेऽनेन इति नय:’ ऐसी करण साधनरूप व्युत्पत्ति करने पर सभी नय '''ज्ञाननय''' हो जाते हैं। और ‘नीयते ये इति नय:’ ऐसी कर्म साधनरूप व्युत्पत्ति करने पर सभी नय अर्थनय हो जाते हैं, क्योंकि नयों के द्वारा अर्थ ही जाने जाते हैं। इस प्रकार प्रधान और गौणरूप से ये नय तीन प्रकार से व्यवस्थित होते हैं।</span> <br> | <span class="GRef">श्लोतकवार्तिक/४/१/३३/श्लोक ९६-९७/२८८</span> <span class="SanskritText">सर्वे शब्दनयास्तेन परार्थप्रतिपादने। स्वार्थप्रकाशने मातुरिमे ज्ञाननया: स्थिता:।९६। वैधीयमानवस्त्वंशा: कथ्यन्तेऽर्थ नयाश्च ते। त्रैविध्यं व्यवतिष्ठन्ते प्रधानगुणभावत:।९७।</span>=<span class="HindiText">श्रोताओं के प्रति वाच्य अर्थ का प्रतिपादन करने पर तो सभी नय शब्दनय स्वरूप हैं, और स्वयं अर्थ का ज्ञान करने पर सभी नय स्वार्थप्रकाशी होने से ज्ञाननय हैं।९६। ‘नीयतेऽनेन इति नय:’ ऐसी करण साधनरूप व्युत्पत्ति करने पर सभी नय '''ज्ञाननय''' हो जाते हैं। और ‘नीयते ये इति नय:’ ऐसी कर्म साधनरूप व्युत्पत्ति करने पर सभी नय अर्थनय हो जाते हैं, क्योंकि नयों के द्वारा अर्थ ही जाने जाते हैं। इस प्रकार प्रधान और गौणरूप से ये नय तीन प्रकार से व्यवस्थित होते हैं।</span> <br> | ||
<span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[नय#I.4.4 । नय I.4.4 ]]।</span> | <span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[नय#I.4.4 । नय I.4.4 ]]।</span> | ||
Latest revision as of 16:37, 12 February 2024
श्लोतकवार्तिक/४/१/३३/श्लोक ९६-९७/२८८ सर्वे शब्दनयास्तेन परार्थप्रतिपादने। स्वार्थप्रकाशने मातुरिमे ज्ञाननया: स्थिता:।९६। वैधीयमानवस्त्वंशा: कथ्यन्तेऽर्थ नयाश्च ते। त्रैविध्यं व्यवतिष्ठन्ते प्रधानगुणभावत:।९७।=श्रोताओं के प्रति वाच्य अर्थ का प्रतिपादन करने पर तो सभी नय शब्दनय स्वरूप हैं, और स्वयं अर्थ का ज्ञान करने पर सभी नय स्वार्थप्रकाशी होने से ज्ञाननय हैं।९६। ‘नीयतेऽनेन इति नय:’ ऐसी करण साधनरूप व्युत्पत्ति करने पर सभी नय ज्ञाननय हो जाते हैं। और ‘नीयते ये इति नय:’ ऐसी कर्म साधनरूप व्युत्पत्ति करने पर सभी नय अर्थनय हो जाते हैं, क्योंकि नयों के द्वारा अर्थ ही जाने जाते हैं। इस प्रकार प्रधान और गौणरूप से ये नय तीन प्रकार से व्यवस्थित होते हैं।
अधिक जानकारी के लिये देखें नय#I.4.4 । नय I.4.4 ।