तोड़ विषियों से मन जोड़ प्रभु से लगन: Difference between revisions
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Latest revision as of 00:36, 14 February 2008
तोड़ विषियों से मन जोड़ प्रभु से लगन,
आज अवसर मिला ।।टेर ।।
रंग दुनियां के अब तक न समझा है तू ।
भूल निज को हा! पर मैं यों रीझा है तू ।
अब तो मुँह खोल चख, स्वाद आतम का लख ।
शिव पयोधर मिला ।।१ ।।
हाथ आने की फिर ये सु-घड़ियाँ नहीं ।
प्रीति जड़ से लगाना है अच्छा नहीं ।।
देख पुद्गल का घर, नहीं रहता अमर ।
जग चराचर मिला ।।२ ।।
ज्ञान ज्योति हृदय में अब तो जगा ।
देख `सौभाग्य' जग में न कोई सगा ।।
तजदे मिथ्या भरम, तुझे सच्चे धरम का ।
है अवसर मिला ।।३ ।।