अजीव कर्म: Difference between revisions
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<span class="GRef"> समयसार/88 </span><span class="PrakritGatha">पुग्गलकम्मं मिच्छं जोगो अविरदि अण्णाणमजीवं। उवओगो अण्णाणं अविरइ मिच्छं च जीवो दु।88/5</span>=<span class="HindiText">जो मिथ्यात्व योग अविरति और अज्ञान अजीव है सो तो पुद्गल कर्म हैं और जो मिथ्यात्व अविरति और अज्ञान जीव है वह उपयोग है। (पुद्गल याके द्रव्य भाये गये कर्म अर्थात् उन कार्मण स्कंधों की अवस्था <b>अजीव कर्म</b> है और जीव के द्वारा भाये गये अर्थात् उपयोगस्वरूप राग-द्वेषादिक जीव कर्म है—<span class="GRef">( समयसार / आत्मख्याति/87 )</span>, <span class="GRef">( प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका/117,124 )</span>।</span> | |||
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Latest revision as of 22:14, 17 November 2023
समयसार/88 पुग्गलकम्मं मिच्छं जोगो अविरदि अण्णाणमजीवं। उवओगो अण्णाणं अविरइ मिच्छं च जीवो दु।88/5=जो मिथ्यात्व योग अविरति और अज्ञान अजीव है सो तो पुद्गल कर्म हैं और जो मिथ्यात्व अविरति और अज्ञान जीव है वह उपयोग है। (पुद्गल याके द्रव्य भाये गये कर्म अर्थात् उन कार्मण स्कंधों की अवस्था अजीव कर्म है और जीव के द्वारा भाये गये अर्थात् उपयोगस्वरूप राग-द्वेषादिक जीव कर्म है—( समयसार / आत्मख्याति/87 ), ( प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका/117,124 )।
- कर्म के बारे में विशेष विवरण के लिये देखें कर्म