विजय: Difference between revisions
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<li> भगवान सुपार्श्वनाथ का शासक यक्ष–देखें [[ तीर्थंकर#5.3 | तीर्थंकर - 5.3]]। </li> | <li class="HindiText"> भगवान सुपार्श्वनाथ का शासक यक्ष–देखें [[ तीर्थंकर#5.3 | तीर्थंकर - 5.3]]। </li> | ||
<li> कल्पातीत देवों का एक भेद–देखें [[ स्वर्ग#3 | स्वर्ग - 3]]। </li> | <li class="HindiText"> कल्पातीत देवों का एक भेद–देखें [[ स्वर्ग#3 | स्वर्ग - 3]]। </li> | ||
<li class="HindiText"> इनका लोक में अवस्थान–देखें [[ स्वर्ग#5.4 | स्वर्ग - 5.4]]।</li> | |||
<li class="HindiText"> विद्युत्प्रभ तथा माल्यवान गजदंत का कूट–देखें [[ लोक#5.4 | लोक - 5.4]]। </li> | |||
<li class="HindiText"> निषध पर्वत का कूट तथा उसका रक्षक देव–देखें [[ लोक#5.4 | लोक - 5.4]]। </li> | |||
<li class="HindiText"> जंबूद्वीप की जगती का पूर्व द्वार–देखें [[ लोक#3.1 | लोक - 3.1]]। </li> | |||
<li class="HindiText">पूर्व विदेह के मंदर वक्षार के कच्छवद्कूट का रक्षक देव–देखें [[ लोक#5.4 | लोक - 5.4]]। </li> | |||
<li class="HindiText"> हरिक्षेत्र का नाभिगिरि–देखें [[ लोक#5.3 | लोक - 5.3]]। </li> | |||
<li class="HindiText"> नंदनवन का एक कूट–देखें [[ लोक#5.5 | लोक - 5.5]]। </li> | |||
<li class="HindiText"> <span class="GRef"> महापुराण/57/श्लोक पूर्वभव् नं. 2 </span> में राजगृह नगर के राजा विश्वभूति का छोटा भाई ‘विशाखभूति’ था।73। पूर्वभव नं. 1 में महाशक्र स्वर्ग में देव हुआ।82। वर्तमान भव में प्रथम बलदेव हुए–देखें [[ शलाका पुरुष#3 | शलाकापुरुष - 3]]। </li> | |||
<li class="HindiText"> <span class="GRef">बृहद् कथाकोश/कथा नं. 6/पृष्ठ </span> - सिंहलद्वीप के शासक गगनादित्य का पुत्र था।17। पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने पिता के मित्र के घर ‘विषान्न’ शब्द का अर्थ ‘पौष्टिक अन्न समझकर उसे खा गया, पर मरा नहीं।18। फिर दीक्षा ले मोक्ष सिधारे।19। </li> | |||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1">(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का पांचवाँ नगर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.86 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का पांचवाँ नगर । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_22#86|हरिवंशपुराण - 22.86]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) राजा अंधकवृष्णि और रानी सुभद्रा के दस पुत्रों में पांचवां पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 70. 96, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.12-13 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) राजा अंधकवृष्णि और रानी सुभद्रा के दस पुत्रों में पांचवां पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 70. 96, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_18#12|हरिवंशपुराण - 18.12-13]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) विद्याधर नमि का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.108 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) विद्याधर नमि का पुत्र । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_22#108|हरिवंशपुराण - 22.108]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) अनेक द्वीपों के अनंतर स्थित जंबूद्वीप के समान एक अन्य जंबूद्वीप रक्षक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.397 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) अनेक द्वीपों के अनंतर स्थित जंबूद्वीप के समान एक अन्य जंबूद्वीप रक्षक देव । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#397|हरिवंशपुराण - 5.397]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) समवसरण के तीसरे कोट में निर्मित पूर्व दिशा के गोपुर के आठ नामों में एक नाम । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57.57 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) समवसरण के तीसरे कोट में निर्मित पूर्व दिशा के गोपुर के आठ नामों में एक नाम । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_57#57|हरिवंशपुराण - 57.57]] </span></p> | ||
<p id="6">(6) वसुदेव के अनेक पुत्रों में एक पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 50.115 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) वसुदेव के अनेक पुत्रों में एक पुत्र । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_50#115|हरिवंशपुराण - 50.115]] </span></p> | ||
<p id="7">(7) प्रथम अनुत्तर विमान । <span class="GRef"> महापुराण 48.13, 50.13, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 105.171, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.65 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) प्रथम अनुत्तर विमान । <span class="GRef"> महापुराण 48.13, 50.13, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_105#171|पद्मपुराण - 105.171]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#65|हरिवंशपुराण - 6.65]] </span></p> | ||
<p id="8">(8) कुरुवंशी एक राजा । इसे राज्य शासन राजा इभवाहन से प्राप्त हुआ था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45.15 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) कुरुवंशी एक राजा । इसे राज्य शासन राजा इभवाहन से प्राप्त हुआ था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_45#15|हरिवंशपुराण - 45.15]] </span></p> | ||
<p id="9">(9) दश पूर्व और ग्यारह अंगों के धारी ग्यारह मुनियों में आठवें मुनि । <span class="GRef"> महापुराण 2.141-145, 76.521-524, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.63, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1.45-47 </span></p> | <p id="9" class="HindiText">(9) दश पूर्व और ग्यारह अंगों के धारी ग्यारह मुनियों में आठवें मुनि । <span class="GRef"> महापुराण 2.141-145, 76.521-524, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_1#63|हरिवंशपुराण - 1.63]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1.45-47 </span></p> | ||
<p id="10">(10) जंबूद्वीप की जगती (कोट) का पूर्व द्वार । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.390 </span></p> | <p id="10">(10) जंबूद्वीप की जगती (कोट) का पूर्व द्वार । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#390|हरिवंशपुराण - 5.390]] </span></p> | ||
<p id="11">(11) धातकीखंड के विजयद्वार का निवासी एक व्यंतर देव । इसकी देवी ज्वलनवेगा थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 60 </span></p> | <p id="11">(11) धातकीखंड के विजयद्वार का निवासी एक व्यंतर देव । इसकी देवी ज्वलनवेगा थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 60 </span></p> | ||
<p id="12">(12) जयकुमार का छोटा भाई । <span class="GRef"> महापुराण 47.256, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12.32 </span></p> | <p id="12">(12) जयकुमार का छोटा भाई । <span class="GRef"> महापुराण 47.256, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_12#32|हरिवंशपुराण - 12.32]] </span></p> | ||
<p id="13">(13) अवसर्पिणी काल के प्रथम बलभद्र । ये जंबूद्वीप में सुरम्य देश के पोदनपुर नगर के राजा प्रजापति और रानी जयावती अपर नाम भद्रा के पुत्र थे । नारायण त्रिपृष्ठ इनका छोटा भाई था । इनके देह की कांति चंद्र वर्ण की थी । गदा, रत्नमाला, मूसल और हल इनके ये चार रत्न थे । इनकी आठ हजार रानियाँ थीं । त्रिपृष्ठ के मरने पर भाई के वियोग से दुःखी होकर इन्होंने अपने पुत्र विजय को राज्य और विजयभद्र को युवराज पद देकर सुवर्णकुंभ मुनि से दीक्षा की थी तथा तप करके कर्मों की निर्जरा की ओर निर्वाण पाया था । <span class="GRef"> महापुराण 57.93-94, 62.92, 165-167, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 290, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 61-70, 146-148 </span></p> | <p id="13">(13) अवसर्पिणी काल के प्रथम बलभद्र । ये जंबूद्वीप में सुरम्य देश के पोदनपुर नगर के राजा प्रजापति और रानी जयावती अपर नाम भद्रा के पुत्र थे । नारायण त्रिपृष्ठ इनका छोटा भाई था । इनके देह की कांति चंद्र वर्ण की थी । गदा, रत्नमाला, मूसल और हल इनके ये चार रत्न थे । इनकी आठ हजार रानियाँ थीं । त्रिपृष्ठ के मरने पर भाई के वियोग से दुःखी होकर इन्होंने अपने पुत्र विजय को राज्य और विजयभद्र को युवराज पद देकर सुवर्णकुंभ मुनि से दीक्षा की थी तथा तप करके कर्मों की निर्जरा की ओर निर्वाण पाया था । <span class="GRef"> महापुराण 57.93-94, 62.92, 165-167, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#290|हरिवंशपुराण - 60.290]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 61-70, 146-148 </span></p> | ||
<p id="14">(14) तीर्थंकर वृषभदेव के तीसवें गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12.60 </span></p> | <p id="14">(14) तीर्थंकर वृषभदेव के तीसवें गणधर । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_12#60|हरिवंशपुराण - 12.60]] </span></p> | ||
<p id="15">(15) हस्तवप्र-नगर का समीपवर्ती एक वन । बलदेव और कृष्ण दोनों भाई यहाँ आये थे और यहाँ से वे कौशांबी वन गये थे । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 62.13-15 </span></p> | <p id="15">(15) हस्तवप्र-नगर का समीपवर्ती एक वन । बलदेव और कृष्ण दोनों भाई यहाँ आये थे और यहाँ से वे कौशांबी वन गये थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_62#13|हरिवंशपुराण - 62.13-15]] </span></p> | ||
<p id="16">(16) रावण द्वारा अपहृता सीता को उसके पास रहने के कारण जन-जन में चर्चित अपवाद को राम से विनयपूर्वक करने वाला प्रजा का एक मुखिया । <span class="GRef"> पद्मपुराण 96.30, 39, 47, 48 </span></p> | <p id="16">(16) रावण द्वारा अपहृता सीता को उसके पास रहने के कारण जन-जन में चर्चित अपवाद को राम से विनयपूर्वक करने वाला प्रजा का एक मुखिया । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_96#30|पद्मपुराण - 96.30]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_96#39|पद्मपुराण - 96.39]], 47, 48 </span></p> | ||
<p>( 17) भरतक्षेत्र की उज्जयिनी नगरी का राजा । इसकी रानी अपराजिता थी । <span class="GRef"> महापुराण 71.443 </span></p> | <p>( 17) भरतक्षेत्र की उज्जयिनी नगरी का राजा । इसकी रानी अपराजिता थी । <span class="GRef"> महापुराण 71.443 </span></p> | ||
<p id="18">(18) आगामी इक्कीसवें तीर्थंकर । <span class="GRef"> महापुराण 76.480 </span></p> | <p id="18">(18) आगामी इक्कीसवें तीर्थंकर । <span class="GRef"> महापुराण 76.480 </span></p> | ||
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<p id="23">(23) धातकीखंड द्वीप में ऐरावत क्षेत्र के तिलकनगर के राजा अभयघोष और रानी सुवर्णतिलका का पुत्र । जयंत इसका भाई था । <span class="GRef"> महापुराण 63.168-169 </span></p> | <p id="23">(23) धातकीखंड द्वीप में ऐरावत क्षेत्र के तिलकनगर के राजा अभयघोष और रानी सुवर्णतिलका का पुत्र । जयंत इसका भाई था । <span class="GRef"> महापुराण 63.168-169 </span></p> | ||
<p id="24">(24) भरतक्षेत्र में मलय देश के रत्नपुर के मंत्री का पुत्र । यह राजकुमार चंद्रचूल का मित्र था । राजा द्वारा प्राणदंड देने पर मंत्री ने इसे संयम दिला दिया था । <span class="GRef"> महापुराण 67.90-92, 121 </span></p> | <p id="24">(24) भरतक्षेत्र में मलय देश के रत्नपुर के मंत्री का पुत्र । यह राजकुमार चंद्रचूल का मित्र था । राजा द्वारा प्राणदंड देने पर मंत्री ने इसे संयम दिला दिया था । <span class="GRef"> महापुराण 67.90-92, 121 </span></p> | ||
<p id="25">(25) वत्स देश की कौशांबी नगरी का राजा । यह चक्रवर्ती जयसेन का पिता था । <span class="GRef"> महापुराण 69.78-80, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20. 188-189 </span></p> | <p id="25">(25) वत्स देश की कौशांबी नगरी का राजा । यह चक्रवर्ती जयसेन का पिता था । <span class="GRef"> महापुराण 69.78-80, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#188|पद्मपुराण - 20.188-189]] </span></p> | ||
<p id="26">(26) चारणऋद्धिधारी एक मुनि । महावीर के दर्शन मात्र से इनका संदेह दूर हो जाने के कारण इन्होंने महावीर को सन्मति कहा था । <span class="GRef"> महापुराण 74.282-283 </span></p> | <p id="26">(26) चारणऋद्धिधारी एक मुनि । महावीर के दर्शन मात्र से इनका संदेह दूर हो जाने के कारण इन्होंने महावीर को सन्मति कहा था । <span class="GRef"> महापुराण 74.282-283 </span></p> | ||
<p id="27">(27) जंबूद्वीप में पूर्व विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश का नगर । जांबवती पूर्वभव में यहाँ वैश्य मधुषेण को बंधुयशा नाम की पुत्री थी । <span class="GRef"> महापुराण 71.363-369 </span>देखें [[ बंधुयशा ]]</p> | <p id="27">(27) जंबूद्वीप में पूर्व विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश का नगर । जांबवती पूर्वभव में यहाँ वैश्य मधुषेण को बंधुयशा नाम की पुत्री थी । <span class="GRef"> महापुराण 71.363-369 </span>देखें [[ बंधुयशा ]]</p> | ||
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<p id="29">(29) सनत्कुमार स्वर्ग के कनकप्रभ विमान का निवासी एक देव । यह पूर्वभव में चंद्रचूल राजकुमार था । <span class="GRef"> महापुराण 67.146 </span>देखें [[ चंद्रचूल ]]</p> | <p id="29">(29) सनत्कुमार स्वर्ग के कनकप्रभ विमान का निवासी एक देव । यह पूर्वभव में चंद्रचूल राजकुमार था । <span class="GRef"> महापुराण 67.146 </span>देखें [[ चंद्रचूल ]]</p> | ||
<p id="30">(30) एक विद्याधर । राम ने अणुमान् को इसे सहायक के रूप में देकर लंका में विभीषण के पास सोता को मुक्त करने का संदेश भेजा था । <span class="GRef"> महापुराण 68.390-396 </span></p> | <p id="30">(30) एक विद्याधर । राम ने अणुमान् को इसे सहायक के रूप में देकर लंका में विभीषण के पास सोता को मुक्त करने का संदेश भेजा था । <span class="GRef"> महापुराण 68.390-396 </span></p> | ||
<p id="31">(31) तीर्थंकर नमिनाथ का पिता यह जंबूद्वीप के वंग देश में मिथिला नगरी का राजा था । <span class="GRef"> महापुराण 69.18-31, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20.57 </span></p> | <p id="31">(31) तीर्थंकर नमिनाथ का पिता यह जंबूद्वीप के वंग देश में मिथिला नगरी का राजा था । <span class="GRef"> महापुराण 69.18-31, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#57|पद्मपुराण - 20.57]] </span></p> | ||
<p id="32">(32) पृथ्वीपुर नगर का राजा । यह चक्रवर्ती सगर का जीव था । <span class="GRef"> <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.127-130 </span> </span></p> | <p id="32">(32) पृथ्वीपुर नगर का राजा । यह चक्रवर्ती सगर का जीव था । <span class="GRef"> <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#127|पद्मपुराण - 20.127-130]] </span> </span></p> | ||
<p id="33">(33) अयोध्या का राजा । यह चक्रवर्ती सगर का पिता था । <span class="GRef"> <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.127-130 </span> </span></p> | <p id="33">(33) अयोध्या का राजा । यह चक्रवर्ती सगर का पिता था । <span class="GRef"> <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#127|पद्मपुराण - 20.127-130]] </span> </span></p> | ||
<p id="34">(34) सनत्कुमार चक्रवर्ती का पिता । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.153 </span></p> | <p id="34">(34) सनत्कुमार चक्रवर्ती का पिता । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#153|पद्मपुराण - 20.153]] </span></p> | ||
<p id="35">(35) विनीता नगरी का राजा । इसकी पटरानी हेमचमल । तथा पुत्र सुरेंद्रमंयु था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 21.73-75 </span></p> | <p id="35">(35) विनीता नगरी का राजा । इसकी पटरानी हेमचमल । तथा पुत्र सुरेंद्रमंयु था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_21#73|पद्मपुराण - 21.73-75]] </span></p> | ||
<p id="36">(36) राजा अतिवीर्य का पुत्र । यह राम का योद्धा था । यह युद्ध में रावण के योद्धा स्वयंभू के द्वारा यष्टि प्रहार से मारा गया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 38.1, 58.16-17, 60.19 </span></p> | <p id="36">(36) राजा अतिवीर्य का पुत्र । यह राम का योद्धा था । यह युद्ध में रावण के योद्धा स्वयंभू के द्वारा यष्टि प्रहार से मारा गया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_38#1|पद्मपुराण - 38.1]], 58.16-17, 60.19 </span></p> | ||
<p id="37">(37) समवसरण के चाँदी से निर्मित चार गापुरों में एक गोपुर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57.24 </span></p> | <p id="37">(37) समवसरण के चाँदी से निर्मित चार गापुरों में एक गोपुर । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_57#24|हरिवंशपुराण - 57.24]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- भगवान सुपार्श्वनाथ का शासक यक्ष–देखें तीर्थंकर - 5.3।
- कल्पातीत देवों का एक भेद–देखें स्वर्ग - 3।
- इनका लोक में अवस्थान–देखें स्वर्ग - 5.4।
- विद्युत्प्रभ तथा माल्यवान गजदंत का कूट–देखें लोक - 5.4।
- निषध पर्वत का कूट तथा उसका रक्षक देव–देखें लोक - 5.4।
- जंबूद्वीप की जगती का पूर्व द्वार–देखें लोक - 3.1।
- पूर्व विदेह के मंदर वक्षार के कच्छवद्कूट का रक्षक देव–देखें लोक - 5.4।
- हरिक्षेत्र का नाभिगिरि–देखें लोक - 5.3।
- नंदनवन का एक कूट–देखें लोक - 5.5।
- महापुराण/57/श्लोक पूर्वभव् नं. 2 में राजगृह नगर के राजा विश्वभूति का छोटा भाई ‘विशाखभूति’ था।73। पूर्वभव नं. 1 में महाशक्र स्वर्ग में देव हुआ।82। वर्तमान भव में प्रथम बलदेव हुए–देखें शलाकापुरुष - 3।
- बृहद् कथाकोश/कथा नं. 6/पृष्ठ - सिंहलद्वीप के शासक गगनादित्य का पुत्र था।17। पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने पिता के मित्र के घर ‘विषान्न’ शब्द का अर्थ ‘पौष्टिक अन्न समझकर उसे खा गया, पर मरा नहीं।18। फिर दीक्षा ले मोक्ष सिधारे।19।
पुराणकोष से
(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का पांचवाँ नगर । हरिवंशपुराण - 22.86
(2) राजा अंधकवृष्णि और रानी सुभद्रा के दस पुत्रों में पांचवां पुत्र । महापुराण 70. 96, हरिवंशपुराण - 18.12-13
(3) विद्याधर नमि का पुत्र । हरिवंशपुराण - 22.108
(4) अनेक द्वीपों के अनंतर स्थित जंबूद्वीप के समान एक अन्य जंबूद्वीप रक्षक देव । हरिवंशपुराण - 5.397
(5) समवसरण के तीसरे कोट में निर्मित पूर्व दिशा के गोपुर के आठ नामों में एक नाम । हरिवंशपुराण - 57.57
(6) वसुदेव के अनेक पुत्रों में एक पुत्र । हरिवंशपुराण - 50.115
(7) प्रथम अनुत्तर विमान । महापुराण 48.13, 50.13, पद्मपुराण - 105.171, हरिवंशपुराण - 6.65
(8) कुरुवंशी एक राजा । इसे राज्य शासन राजा इभवाहन से प्राप्त हुआ था । हरिवंशपुराण - 45.15
(9) दश पूर्व और ग्यारह अंगों के धारी ग्यारह मुनियों में आठवें मुनि । महापुराण 2.141-145, 76.521-524, हरिवंशपुराण - 1.63, वीरवर्द्धमान चरित्र 1.45-47
(10) जंबूद्वीप की जगती (कोट) का पूर्व द्वार । हरिवंशपुराण - 5.390
(11) धातकीखंड के विजयद्वार का निवासी एक व्यंतर देव । इसकी देवी ज्वलनवेगा थी । हरिवंशपुराण 60. 60
(12) जयकुमार का छोटा भाई । महापुराण 47.256, हरिवंशपुराण - 12.32
(13) अवसर्पिणी काल के प्रथम बलभद्र । ये जंबूद्वीप में सुरम्य देश के पोदनपुर नगर के राजा प्रजापति और रानी जयावती अपर नाम भद्रा के पुत्र थे । नारायण त्रिपृष्ठ इनका छोटा भाई था । इनके देह की कांति चंद्र वर्ण की थी । गदा, रत्नमाला, मूसल और हल इनके ये चार रत्न थे । इनकी आठ हजार रानियाँ थीं । त्रिपृष्ठ के मरने पर भाई के वियोग से दुःखी होकर इन्होंने अपने पुत्र विजय को राज्य और विजयभद्र को युवराज पद देकर सुवर्णकुंभ मुनि से दीक्षा की थी तथा तप करके कर्मों की निर्जरा की ओर निर्वाण पाया था । महापुराण 57.93-94, 62.92, 165-167, हरिवंशपुराण - 60.290, वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 61-70, 146-148
(14) तीर्थंकर वृषभदेव के तीसवें गणधर । हरिवंशपुराण - 12.60
(15) हस्तवप्र-नगर का समीपवर्ती एक वन । बलदेव और कृष्ण दोनों भाई यहाँ आये थे और यहाँ से वे कौशांबी वन गये थे । हरिवंशपुराण - 62.13-15
(16) रावण द्वारा अपहृता सीता को उसके पास रहने के कारण जन-जन में चर्चित अपवाद को राम से विनयपूर्वक करने वाला प्रजा का एक मुखिया । पद्मपुराण - 96.30,पद्मपुराण - 96.39, 47, 48
( 17) भरतक्षेत्र की उज्जयिनी नगरी का राजा । इसकी रानी अपराजिता थी । महापुराण 71.443
(18) आगामी इक्कीसवें तीर्थंकर । महापुराण 76.480
(19) तीर्थंकर नमिनाथ का मुख्य प्रश्नकर्त्ता । महापुराण 76.532-533
(20) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश की पुंडरीकिणी नगरी के राजा वज्रसेन और रानी श्रीकांता का पुत्र । यह वज्रनाभ, वैजयंत आदि का भाई था । महापुराण 11. 8-10
(21) एक नगर । महानंद यहाँ का राजा था । महापुराण 8.227
(22) एक मुनि । अमिततेज और श्रीविजय के भय से अशनिघोष इन्हीं के समवसरण में पहुँचा था । यहाँ मानस्तंभ देखकर ये सब वैर भूल गये थे । महापुराण 62.281-282
(23) धातकीखंड द्वीप में ऐरावत क्षेत्र के तिलकनगर के राजा अभयघोष और रानी सुवर्णतिलका का पुत्र । जयंत इसका भाई था । महापुराण 63.168-169
(24) भरतक्षेत्र में मलय देश के रत्नपुर के मंत्री का पुत्र । यह राजकुमार चंद्रचूल का मित्र था । राजा द्वारा प्राणदंड देने पर मंत्री ने इसे संयम दिला दिया था । महापुराण 67.90-92, 121
(25) वत्स देश की कौशांबी नगरी का राजा । यह चक्रवर्ती जयसेन का पिता था । महापुराण 69.78-80, पद्मपुराण - 20.188-189
(26) चारणऋद्धिधारी एक मुनि । महावीर के दर्शन मात्र से इनका संदेह दूर हो जाने के कारण इन्होंने महावीर को सन्मति कहा था । महापुराण 74.282-283
(27) जंबूद्वीप में पूर्व विदेहक्षेत्र के पुष्कलावती देश का नगर । जांबवती पूर्वभव में यहाँ वैश्य मधुषेण को बंधुयशा नाम की पुत्री थी । महापुराण 71.363-369 देखें बंधुयशा
(28) राजगृह नगर का एक युवराज । तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ इसी युवराज को राज्य सौंपकर दीक्षित हुए ये । महापुराण 67.39
(29) सनत्कुमार स्वर्ग के कनकप्रभ विमान का निवासी एक देव । यह पूर्वभव में चंद्रचूल राजकुमार था । महापुराण 67.146 देखें चंद्रचूल
(30) एक विद्याधर । राम ने अणुमान् को इसे सहायक के रूप में देकर लंका में विभीषण के पास सोता को मुक्त करने का संदेश भेजा था । महापुराण 68.390-396
(31) तीर्थंकर नमिनाथ का पिता यह जंबूद्वीप के वंग देश में मिथिला नगरी का राजा था । महापुराण 69.18-31, पद्मपुराण - 20.57
(32) पृथ्वीपुर नगर का राजा । यह चक्रवर्ती सगर का जीव था । पद्मपुराण - 20.127-130
(33) अयोध्या का राजा । यह चक्रवर्ती सगर का पिता था । पद्मपुराण - 20.127-130
(34) सनत्कुमार चक्रवर्ती का पिता । पद्मपुराण - 20.153
(35) विनीता नगरी का राजा । इसकी पटरानी हेमचमल । तथा पुत्र सुरेंद्रमंयु था । पद्मपुराण - 21.73-75
(36) राजा अतिवीर्य का पुत्र । यह राम का योद्धा था । यह युद्ध में रावण के योद्धा स्वयंभू के द्वारा यष्टि प्रहार से मारा गया था । पद्मपुराण - 38.1, 58.16-17, 60.19
(37) समवसरण के चाँदी से निर्मित चार गापुरों में एक गोपुर । हरिवंशपुराण - 57.24