घृतस्रावी: Difference between revisions
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<p class="HindiText"> | <span class="GRef">तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०८०-१०८७</span> <p class="PrakritText">........ रिसिपाणितलणिक्खित्तं रुक्खाहारादियं पि खणमेत्ते। पावेदि सप्पिरूवं जीए सा सप्पियासवी रिद्धी ।१०८६। अहवा दुक्खप्पमुहं सवणेण मुणिंदव्ववयणस्स। उवसामदि जीवाणं एसा सप्पियासवी रिद्धी ।१०८७।</p> <p class="HindiText"> = ...... जिस ऋद्धि से ऋषि के हस्ततल में निक्षिप्त रूखा आहारादिक भी क्षणमात्र में '''घृतरूप''' को प्राप्त करता है, वह '''`सर्पिरास्रावी''' ऋद्धि है ।१०८६। अथवा जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनीन्द्र के दिव्य वचनों के सुनने से ही जीवों के दुःखादि शान्त हो जाते हैं, वह सर्पिरास्रावी ऋद्धि है ।१०८७।</p> | ||
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तिलोयपण्णत्ति अधिकार संख्या ४/१०८०-१०८७
........ रिसिपाणितलणिक्खित्तं रुक्खाहारादियं पि खणमेत्ते। पावेदि सप्पिरूवं जीए सा सप्पियासवी रिद्धी ।१०८६। अहवा दुक्खप्पमुहं सवणेण मुणिंदव्ववयणस्स। उवसामदि जीवाणं एसा सप्पियासवी रिद्धी ।१०८७।
= ...... जिस ऋद्धि से ऋषि के हस्ततल में निक्षिप्त रूखा आहारादिक भी क्षणमात्र में घृतरूप को प्राप्त करता है, वह `सर्पिरास्रावी ऋद्धि है ।१०८६। अथवा जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनीन्द्र के दिव्य वचनों के सुनने से ही जीवों के दुःखादि शान्त हो जाते हैं, वह सर्पिरास्रावी ऋद्धि है ।१०८७।
देखें ऋद्धि - 8।