मार्ग सम्यक्त्व: Difference between revisions
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देखें [[ सम्यग्दर्शन#I.1 | सम्यग्दर्शन - I.1]]। | <span class="GRef"> राजवार्तिक/3/36/2/201/12 </span><span class="SanskritText">दर्शनार्या दशधा - आज्ञामार्गोपदेशसूत्रबीजसंक्षेपविस्तारार्थावगाढपरमावगाढरुचिभेदात् । </span>=<span class="HindiText">आज्ञा, '''मार्ग,''' उपदेश, सूत्र, बीज, संक्षेप, विस्तार, अर्थ, अवगाढ और परमावगाढ रुचि के भेद से दर्शनार्य दश प्रकार हैं। </span> | ||
<p><span class="GRef"> आत्मानुशासन/12 </span><span class="SanskritText">मार्गश्रद्धानमाहु: पुरुषवरपुराणोपदेशोपजाता, या संज्ञानागमाब्धिप्रसृतिभिरुपदेशादिरादेशि दृष्टि:।12।</span> =<span class="HindiText">दर्शनमोह का उपशम होने से ग्रंथ श्रवण के बिना जो कल्याणकारी मोक्षमार्ग का श्रद्धान होता है उसे '''मार्ग सम्यग्दर्शन''' कहते हैं। </span><br> | |||
<span class="HindiText">विशेष विस्तार के लिये देखें [[ सम्यग्दर्शन#I.1 | सम्यग्दर्शन - I.1]]।</span> | |||
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Revision as of 20:44, 22 June 2023
सिद्धांतकोष से
राजवार्तिक/3/36/2/201/12 दर्शनार्या दशधा - आज्ञामार्गोपदेशसूत्रबीजसंक्षेपविस्तारार्थावगाढपरमावगाढरुचिभेदात् । =आज्ञा, मार्ग, उपदेश, सूत्र, बीज, संक्षेप, विस्तार, अर्थ, अवगाढ और परमावगाढ रुचि के भेद से दर्शनार्य दश प्रकार हैं।
आत्मानुशासन/12 मार्गश्रद्धानमाहु: पुरुषवरपुराणोपदेशोपजाता, या संज्ञानागमाब्धिप्रसृतिभिरुपदेशादिरादेशि दृष्टि:।12। =दर्शनमोह का उपशम होने से ग्रंथ श्रवण के बिना जो कल्याणकारी मोक्षमार्ग का श्रद्धान होता है उसे मार्ग सम्यग्दर्शन कहते हैं।
विशेष विस्तार के लिये देखें सम्यग्दर्शन - I.1।
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पुराणकोष से
सम्यक्त्व का दूसरा भेद । यह परिग्रह-रहित निश्चैल और पाणिपात्रत्व लक्षण वाले मोक्षमार्ग को सुनकर उसमें उत्पन्न श्रद्धा से होता है । महापुराण 74.439-442, वीरवर्द्धमान चरित्र 19. 144