तुमको कैसे सुख ह्वै मीत!: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: तुमको कैसे सुख ह्वै मीत!<br> जिन विषयनि सँग बहु दुख पायो, तिनहीसों अति प्री...) |
No edit summary |
||
Line 12: | Line 12: | ||
[[Category:Bhajan]] | [[Category:Bhajan]] | ||
[[Category:द्यानतरायजी]] | [[Category:द्यानतरायजी]] | ||
[[Category:आध्यात्मिक भक्ति]] |
Latest revision as of 09:38, 15 February 2008
तुमको कैसे सुख ह्वै मीत!
जिन विषयनि सँग बहु दुख पायो, तिनहीसों अति प्रीति।।तुमको. ।।
उद्यमवान बाग चलनेको, तीरथसों भयभीत ।
धरम कथा कथनेको मूरख, चतुर मृषा-रस-रीत ।।तुमको. ।।१ ।।
नाट विलोकनमें बहु समझौ, रंच न दरस-प्रतीत ।
परमागम सुन ऊंघन लागौ, जागौ विकथा गीत ।।तुमको. ।।२ ।।
खान पान सुनके मन हरषै, संजम सुन ह्वै ईत ।
`द्यानत' तापर चाहत हौगे, शिवपद सुखित निचीत ।।तुमको. ।।३ ।।