जाति: Difference between revisions
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<p id="3">(3) माना के वंश की शुद्धि । <span class="GRef"> महापुराण 39.85 </span></p> | <p id="3">(3) माना के वंश की शुद्धि । <span class="GRef"> महापुराण 39.85 </span></p> | ||
<p id="4">(4) पारिव्राज्य क्रिया के परमेष्ठियों के गुणरूप सत्ताईस सूत्रपदों मे प्रथम सूत्रपद । उत्तम जाति को प्राप्त अर्हंत के चरण सेवक दूसरे जन्म में दिव्या, विजयाश्रिता, परमा और स्वा इन चार जातियों को प्राप्त होता है । इन जातियों मे दिव्या इंद्र के, विजयाश्रिता चक्रवर्तियों के, परमा अर्हंतों के और स्वा मोक्ष प्राप्त जीवों के होती है । <span class="GRef"> महापुराण 39.162-168 </span></p> | <p id="4">(4) पारिव्राज्य क्रिया के परमेष्ठियों के गुणरूप सत्ताईस सूत्रपदों मे प्रथम सूत्रपद । उत्तम जाति को प्राप्त अर्हंत के चरण सेवक दूसरे जन्म में दिव्या, विजयाश्रिता, परमा और स्वा इन चार जातियों को प्राप्त होता है । इन जातियों मे दिव्या इंद्र के, विजयाश्रिता चक्रवर्तियों के, परमा अर्हंतों के और स्वा मोक्ष प्राप्त जीवों के होती है । <span class="GRef"> महापुराण 39.162-168 </span></p> | ||
<p id="5">(5) जीवों का वर्ग-भेद । जीव अनेक प्रकार के होते हैं । शारीरिक विशेषताओं के कारण जाति भेद होता है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 11. 194-195 </span></p> | <p id="5">(5) जीवों का वर्ग-भेद । जीव अनेक प्रकार के होते हैं । शारीरिक विशेषताओं के कारण जाति भेद होता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_11#194|पद्मपुराण - 11.194-195]] </span></p> | ||
<p id="6">(6) मुलत: मनुष्य जाति एक ही थी । आजीविका के कारण इसके चार भेद किये गये । <span class="GRef"> महापुराण 38.45-46 </span>सामान्य रूप से जन्म के कारण व्यक्ति को किसी वर्ण विशेष से संबंधित माना जाता है किंतु यथार्थ मे वर्ण व्यवस्था गुणों के आधीन मानी गयी है, जाति के आधीन नहीं । कोई भी जाति निंदनीय नहीं है क्योंकि गुणों से ही कल्याण होता है जाति से नहीं । व्रतों को पालने वाले चांडाल को भी ब्राह्मण कहा गया है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 11. 198-203 </span></p> | <p id="6">(6) मुलत: मनुष्य जाति एक ही थी । आजीविका के कारण इसके चार भेद किये गये । <span class="GRef"> महापुराण 38.45-46 </span>सामान्य रूप से जन्म के कारण व्यक्ति को किसी वर्ण विशेष से संबंधित माना जाता है किंतु यथार्थ मे वर्ण व्यवस्था गुणों के आधीन मानी गयी है, जाति के आधीन नहीं । कोई भी जाति निंदनीय नहीं है क्योंकि गुणों से ही कल्याण होता है जाति से नहीं । व्रतों को पालने वाले चांडाल को भी ब्राह्मण कहा गया है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_11#198|पद्मपुराण - 11.198-203]] </span></p> | ||
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Revision as of 22:21, 17 November 2023
(1) शारीर स्वर का एक भेद । हरिवंशपुराण 19.148
(2) गांधर्व के तीन भेद है― स्वर, ताल और पद (बोल) । इनमें पदगत गांधर्व को जाति कहते हैं । हरिवंशपुराण 19.149,
(3) माना के वंश की शुद्धि । महापुराण 39.85
(4) पारिव्राज्य क्रिया के परमेष्ठियों के गुणरूप सत्ताईस सूत्रपदों मे प्रथम सूत्रपद । उत्तम जाति को प्राप्त अर्हंत के चरण सेवक दूसरे जन्म में दिव्या, विजयाश्रिता, परमा और स्वा इन चार जातियों को प्राप्त होता है । इन जातियों मे दिव्या इंद्र के, विजयाश्रिता चक्रवर्तियों के, परमा अर्हंतों के और स्वा मोक्ष प्राप्त जीवों के होती है । महापुराण 39.162-168
(5) जीवों का वर्ग-भेद । जीव अनेक प्रकार के होते हैं । शारीरिक विशेषताओं के कारण जाति भेद होता है । पद्मपुराण - 11.194-195
(6) मुलत: मनुष्य जाति एक ही थी । आजीविका के कारण इसके चार भेद किये गये । महापुराण 38.45-46 सामान्य रूप से जन्म के कारण व्यक्ति को किसी वर्ण विशेष से संबंधित माना जाता है किंतु यथार्थ मे वर्ण व्यवस्था गुणों के आधीन मानी गयी है, जाति के आधीन नहीं । कोई भी जाति निंदनीय नहीं है क्योंकि गुणों से ही कल्याण होता है जाति से नहीं । व्रतों को पालने वाले चांडाल को भी ब्राह्मण कहा गया है । पद्मपुराण - 11.198-203