महीपाल: Difference between revisions
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Revision as of 15:59, 15 December 2022
सिद्धांतकोष से
महापुराण/73/ श्लोक–महीपाल नगर का राजा तथा भगवान् पार्श्वनाथ का नाना था।96। महादेवी के वियोग में पंचाग्नि तप तपता था। कुमार पार्श्वनाथ से योग्य विनय न पाने पर क्रुद्ध हुआ। कुमार द्वारा बताये जाने पर उनकी सत्यता की परीक्षा करने के लिए जलती हुई लकड़ी को कुल्हाड़ी से चीरा तो वास्तव में ही वहाँ सर्प का जोड़ा देखकर चकित हुआ। यह कमठ का जीव था तथा भगवान् के जीव से वैर रखता था। शल्यसहित मरणकर शंबर नामक ज्योतिष देव बना, जिसने तप करते हुए भगवान् पर घोर उपसर्ग किया।97-117। यह कमठ का आगे का आठवाँ भव है।
प्रतिहार वंश का राजा था। बढ़वाण प्रांत में राज्य करता था। धरणी वराह इसका अपर नाम था। समय–(श.सं.836; वि.सं.971 (ई. 914); ( हरिवंशपुराण/प्र.6/पं.पन्नालाल ।
पुराणकोष से
(1) जरासंध का पुत्र । हरिवंशपुराण 52.31
(2) भरतक्षेत्र के महीपाल नगर का राजा । यह तीर्थंकर पार्श्वनाथ का नाना था । यह अपनी रानी के वियोग से साधु होकर पंचाग्नि तप करने लगा था । पार्श्वनाथ के नमन न करने से क्षुब्ध होकर इसने पार्श्वनाथ की अवज्ञा की थी । पार्श्वनाथ के रोकने पर भी इसने बूझती हुई अग्नि में लकड़ी डालने के लिए कुल्हाड़ी से उसे काट ही डाला था । इससे लकड़ी के भीतर रहने वाला नाग-युगल क्षत-विक्षत हो गया था । पार्श्वनाथ को अपना तिरस्कर्ता जानकर यह पार्श्वनाथ पर क्रोध करते हुए सशल्य मरा और ज्योतिषी देव शंबर हुआ । महापुराण 73. 96-103, 117-118