द्विपृष्ठ: Difference between revisions
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Revision as of 22:21, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
―( महापुराण/58/ श्लोक नं.)
पूर्व भव नं.3 में भरतक्षेत्र स्थित कनकपुर का राजा ‘सुषेण’ था (61)। पूर्वभव नं.2 में प्राणत स्वर्ग में देव हुआ। (79)। वर्तमानभव में द्वितीय नारायण हुए।―देखें शलाका पुरुष - 4।
पुराणकोष से
(1) अवसर्पिणी के दु:षमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न एक शलाका पुरुष-द्वितीय नारायण । यह द्वारवती-नगरी के राजा ब्रह्म और उसकी दूसरी रानी उषा का पुत्र था । इसकी कुल आयु बहत्तर लाख वर्ष थी । उसमें इसके कुमारकाल में पच्चीस हजार वर्ष, मंडलीक अवस्था में भी इतने ही वर्ष, सौ वर्ष दिग्विजय में, और राज्य में इकहत्तर लाख उनचास हजार नौ सौ वर्ष व्यतीत हुए थे । महापुराण 58.84-85, हरिवंशपुराण 60. 519-520, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 112 यह भरतक्षेत्र के तीन खंडों का स्वामी था । इसने कोटिशिला को अपने मस्तक तक ऊपर उठा लिया था । बलभद्र-अचलस्तोक इसका भाई था । भोगवर्धन-नगर के राजा श्रीधर का पुत्र तारक-प्रतिनारायण था । इसने द्विपृष्ठ से उसका गंधहस्ती मांगा था । द्विपृष्ठ ने उसे नहीं दिया । इस पर दोनों में युद्ध हुआ । तारक ने द्विपृष्ठ पर अपना चक्र चलाया । चक्र द्विपृष्ठ के हाथ में आ गया । उसी चक्र से तारक मारा गया । सात रत्नों और तीन खंड पृथिवी का स्वामित्व प्राप्त कर चिरकाल तक भोग भोगते हुए द्विपृष्ठ मरकर सातवें नरक गया । महापुराण 58.90-91, 102-104, 114-118, हरिवंशपुराण 53. 36, 60. 288-289 तीसरे पूर्वभव में यह भरतक्षेत्र के कनकपुर-नगर में सुषेण नामक नृप था । दूसरे पूर्वभव में चौदहवें स्वर्ग में देव हुआ पश्चात् इस नाम का अर्धचक्री हुआ । महापुराण 58.122
(2) आगामी उत्सर्पिणी काल का नौवां नारायण । महापुराण 76. 489 हरिवंशपुराण कार ने इसे आगामी आठवाँ नारायण बताया है । हरिवंशपुराण 60. 567