निर्जरानुप्रेक्षा: Difference between revisions
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<span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/7/417</span> <p class="SanskritText">निर्जरा वेदनाविपाक इत्युक्तम्। सा द्वेधा-अबुद्धिपूर्वा कुशलमूला चेति। तत्र नरकादिषु गतिषु कर्मफलविपाकजा अबुद्धिपूर्वा सा अकुशलानुबंधा। परिषहजये कृते कुशलमूला सा शुभानुबंधा निरनुबंधा चेति। इत्येवं निर्जराया गुणदोषभावनं निर्जरानुपेक्षा। </p> | <span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/7/417</span> <p class="SanskritText">निर्जरा वेदनाविपाक इत्युक्तम्। सा द्वेधा-अबुद्धिपूर्वा कुशलमूला चेति। तत्र नरकादिषु गतिषु कर्मफलविपाकजा अबुद्धिपूर्वा सा अकुशलानुबंधा। परिषहजये कृते कुशलमूला सा शुभानुबंधा निरनुबंधा चेति। इत्येवं निर्जराया गुणदोषभावनं निर्जरानुपेक्षा। </p> | ||
<p class="HindiText">= वेदना विपाक का नाम निर्जरा है, यह पहले कह आये हैं। वह दो प्रकार की है - अबुद्धिपूर्वा और कुशलमूला। नरकादि गतियों में कर्मफल के विपाक से जायमान जो अबुद्धिपूर्वा निर्जरा होती है, वह अकुशलानुबंधा है। तथा परिषह के जीतने पर जो निर्जरा होती है, वह कुशलमूला निर्जरा है। वह शुभानुबंधा और निरनुबंधा होती है। इस प्रकार निर्जरा के गुणदोषों का चिंतवन करना '''निर्जरानुप्रेक्षा''' है। </p> | <p class="HindiText">= वेदना विपाक का नाम निर्जरा है, यह पहले कह आये हैं। वह दो प्रकार की है - अबुद्धिपूर्वा और कुशलमूला। नरकादि गतियों में कर्मफल के विपाक से जायमान जो अबुद्धिपूर्वा निर्जरा होती है, वह अकुशलानुबंधा है। तथा परिषह के जीतने पर जो निर्जरा होती है, वह कुशलमूला निर्जरा है। वह शुभानुबंधा और निरनुबंधा होती है। इस प्रकार निर्जरा के गुणदोषों का चिंतवन करना '''निर्जरानुप्रेक्षा''' है। </p> | ||
<p> | <p><span class="GRef">(भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 1845-1856)</span> <span class="GRef">( मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 744-749)</span> <span class="GRef">(राजवार्तिक अध्याय 9/7,6/602/11)</span> <span class="GRef">( पद्मनंदी पंचविंशतिका/6/53 )</span> <span class="GRef">( अनगार धर्मामृत अधिकार 6/74-75/627)</span>।</p> | ||
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<div class="HindiText">अधिक जानकारी के लिए देखें [[ अनुप्रेक्षा#1.10 | अनुप्रेक्षा - 1.10 ]]।</div> | <div class="HindiText">अधिक जानकारी के लिए देखें [[ अनुप्रेक्षा#1.10 | अनुप्रेक्षा - 1.10 ]]।</div> |
Revision as of 22:21, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/7/417
निर्जरा वेदनाविपाक इत्युक्तम्। सा द्वेधा-अबुद्धिपूर्वा कुशलमूला चेति। तत्र नरकादिषु गतिषु कर्मफलविपाकजा अबुद्धिपूर्वा सा अकुशलानुबंधा। परिषहजये कृते कुशलमूला सा शुभानुबंधा निरनुबंधा चेति। इत्येवं निर्जराया गुणदोषभावनं निर्जरानुपेक्षा।
= वेदना विपाक का नाम निर्जरा है, यह पहले कह आये हैं। वह दो प्रकार की है - अबुद्धिपूर्वा और कुशलमूला। नरकादि गतियों में कर्मफल के विपाक से जायमान जो अबुद्धिपूर्वा निर्जरा होती है, वह अकुशलानुबंधा है। तथा परिषह के जीतने पर जो निर्जरा होती है, वह कुशलमूला निर्जरा है। वह शुभानुबंधा और निरनुबंधा होती है। इस प्रकार निर्जरा के गुणदोषों का चिंतवन करना निर्जरानुप्रेक्षा है।
(भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 1845-1856) ( मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 744-749) (राजवार्तिक अध्याय 9/7,6/602/11) ( पद्मनंदी पंचविंशतिका/6/53 ) ( अनगार धर्मामृत अधिकार 6/74-75/627)।
पुराणकोष से
बारह भावनाओं में नौवीं भावना । इसमें कर्मों की निर्जरा किस प्रकार से हो इसका चिंतन किया जाता है । महापुराण 11. 105-109, महापुराण 14.238-239, पांडवपुराण 25.105-107, वीरवर्द्धमान चरित्र 11. 81-87 देखें निर्जरा