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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) रुचकगिरि के रुचककूट की रहने वाली दिक्कुमारी देवी । यह हाथ में चँमर लेकर जिनमाता की सेवा करती है । <span class="GRef"> महापुराण 3. 112-113, 12.163-164, 38.222, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.716-717, 44. 11, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 7.105-108 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) रुचकगिरि के रुचककूट की रहने वाली दिक्कुमारी देवी । यह हाथ में चँमर लेकर जिनमाता की सेवा करती है । <span class="GRef"> महापुराण 3. 112-113, 12.163-164, 38.222, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#716|हरिवंशपुराण - 5.716-717]], 44. 11, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 7.105-108 </span></p> | ||
<p id="2">(2) विजयार्घ पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित गुंजानगर के राजा सिंहविक्रम की रानी । यह केवली सकलभूषण की जननी थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_104#103|पद्मपुराण - 104.103-117]] </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) विजयार्घ पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित गुंजानगर के राजा सिंहविक्रम की रानी । यह केवली सकलभूषण की जननी थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_104#103|पद्मपुराण - 104.103-117]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) पद्मसरोवर के कमल पर बने भवन में रहने वाली व्यंतरेंद्र की देवी । <span class="GRef"> महापुराण 32.121, 63.200, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.128-130 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) पद्मसरोवर के कमल पर बने भवन में रहने वाली व्यंतरेंद्र की देवी । <span class="GRef"> महापुराण 32.121, 63.200, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#128|हरिवंशपुराण - 5.128-130]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) छ: जिनमातृकाओं में एक मातृका देवी । यह प्रथम कुलाचल पर स्थित पद्म सरोवर के कमल पर रहती है । <span class="GRef"> महापुराण 38.226 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) छ: जिनमातृकाओं में एक मातृका देवी । यह प्रथम कुलाचल पर स्थित पद्म सरोवर के कमल पर रहती है । <span class="GRef"> महापुराण 38.226 </span></p> | ||
<p id="5">(5) त्रिशृंग नगर के राजा प्रचंडवाहन और रानी विमलप्रभा की दस पुत्रियों में चौथी पुत्री । ये सभी बहिनें पहले युधिष्ठिर के लिए प्रदान की गई थी, किंतु बाद में युधिष्ठिर के अन्यथा (मरण) समाचार सुनने पर ये अणुव्रत धारिणी श्राविकाऐं बन गयी थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45.95-99 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) त्रिशृंग नगर के राजा प्रचंडवाहन और रानी विमलप्रभा की दस पुत्रियों में चौथी पुत्री । ये सभी बहिनें पहले युधिष्ठिर के लिए प्रदान की गई थी, किंतु बाद में युधिष्ठिर के अन्यथा (मरण) समाचार सुनने पर ये अणुव्रत धारिणी श्राविकाऐं बन गयी थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_45#95|हरिवंशपुराण - 45.95-99]] </span></p> | ||
<p id="6">(6) भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक पर्वत । दिग्विजय के समय भरतेश के सेनापति ने यहाँ के राजा को पराजित किया था । <span class="GRef"> महापुराण 29.90 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक पर्वत । दिग्विजय के समय भरतेश के सेनापति ने यहाँ के राजा को पराजित किया था । <span class="GRef"> महापुराण 29.90 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- विजयार्ध की दक्षिण श्रेणी का एक नगर - देखें विद्याधर ;
- हिमवान् पर्वतस्थ एक कूट - देखें लोक - 5.4;
- हिमवान् पर्वतस्थ पद्मह्रद की स्वामिनी देवी - देखें लोक - 3.9;
- रुचक पर्वत निवासिनी दिक्कुमारी देवी - देखें लोक - 5.13;
- भरत के आर्य खंडस्थ एक पर्वत - देखें मनुष्य - 4।
पुराणकोष से
(1) रुचकगिरि के रुचककूट की रहने वाली दिक्कुमारी देवी । यह हाथ में चँमर लेकर जिनमाता की सेवा करती है । महापुराण 3. 112-113, 12.163-164, 38.222, हरिवंशपुराण - 5.716-717, 44. 11, वीरवर्द्धमान चरित्र 7.105-108
(2) विजयार्घ पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित गुंजानगर के राजा सिंहविक्रम की रानी । यह केवली सकलभूषण की जननी थी । पद्मपुराण - 104.103-117
(3) पद्मसरोवर के कमल पर बने भवन में रहने वाली व्यंतरेंद्र की देवी । महापुराण 32.121, 63.200, हरिवंशपुराण - 5.128-130
(4) छ: जिनमातृकाओं में एक मातृका देवी । यह प्रथम कुलाचल पर स्थित पद्म सरोवर के कमल पर रहती है । महापुराण 38.226
(5) त्रिशृंग नगर के राजा प्रचंडवाहन और रानी विमलप्रभा की दस पुत्रियों में चौथी पुत्री । ये सभी बहिनें पहले युधिष्ठिर के लिए प्रदान की गई थी, किंतु बाद में युधिष्ठिर के अन्यथा (मरण) समाचार सुनने पर ये अणुव्रत धारिणी श्राविकाऐं बन गयी थी । हरिवंशपुराण - 45.95-99
(6) भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक पर्वत । दिग्विजय के समय भरतेश के सेनापति ने यहाँ के राजा को पराजित किया था । महापुराण 29.90