श्रुतस्कंध: Difference between revisions
From जैनकोष
Prachi jain (talk | contribs) No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="HindiText"> <p> जिनभाषित और गणधर द्वारा रचित द्वादशांग श्रुत । यह अनादिनिधन अभ्युदय एवं मोक्ष रूप उच्च फल देने वाला है । इसके चार महाधिकार कहे हैं । उनमें प्रथम महाधिकार प्रथमानुयोग में तीर्थंकर आदि सत्पुरुषों के चरित का वर्णन है । दूसरे करणानुयोग में तीनों लोकों का वर्णन है । तीसरे चरणानुयोग में मुनि और श्रावकों के चारित्र की शुद्धि का निरूपण है और चौथे महाधिकार द्रव्यानुयोग में प्रमाण, नय, निक्षेप आदि से द्रव्य का निर्णय बताया गया है । <span class="GRef"> महापुराण 1. 18, 2.98-101, 34.133, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.111 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> जिनभाषित और गणधर द्वारा रचित द्वादशांग श्रुत । यह अनादिनिधन अभ्युदय एवं मोक्ष रूप उच्च फल देने वाला है । इसके चार महाधिकार कहे हैं । उनमें प्रथम महाधिकार प्रथमानुयोग में तीर्थंकर आदि सत्पुरुषों के चरित का वर्णन है । दूसरे करणानुयोग में तीनों लोकों का वर्णन है । तीसरे चरणानुयोग में मुनि और श्रावकों के चारित्र की शुद्धि का निरूपण है और चौथे महाधिकार द्रव्यानुयोग में प्रमाण, नय, निक्षेप आदि से द्रव्य का निर्णय बताया गया है । <span class="GRef"> महापुराण 1. 18, 2.98-101, 34.133, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#111|हरिवंशपुराण - 2.111]] </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
जिनभाषित और गणधर द्वारा रचित द्वादशांग श्रुत । यह अनादिनिधन अभ्युदय एवं मोक्ष रूप उच्च फल देने वाला है । इसके चार महाधिकार कहे हैं । उनमें प्रथम महाधिकार प्रथमानुयोग में तीर्थंकर आदि सत्पुरुषों के चरित का वर्णन है । दूसरे करणानुयोग में तीनों लोकों का वर्णन है । तीसरे चरणानुयोग में मुनि और श्रावकों के चारित्र की शुद्धि का निरूपण है और चौथे महाधिकार द्रव्यानुयोग में प्रमाण, नय, निक्षेप आदि से द्रव्य का निर्णय बताया गया है । महापुराण 1. 18, 2.98-101, 34.133, हरिवंशपुराण - 2.111