स्थिति: Difference between revisions
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<li>स्थिति (काल) की ओघ आदेश प्ररूपणा।- देखें | <li>स्थिति (काल) की ओघ आदेश प्ररूपणा।-देखें [[ काल#5 | काल - 5]],6।</li> | ||
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<ul><li>निषेकों की त्रिकोण रचना का आकार।- देखें | <ul><li>निषेकों की त्रिकोण रचना का आकार।-देखें [[ उदय#3 | उदय - 3]]।</li></ul> | ||
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<li id="3.3">[[स्थिति निषेक रचना#3 | कर्म व नोकर्म की निषेक रचना सम्बन्धी विशेष सूची।]]</li> | <li id="3.3">[[स्थिति निषेक रचना#3 | कर्म व नोकर्म की निषेक रचना सम्बन्धी विशेष सूची।]]</li> | ||
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<ul><li>जघन्य स्थिति में निषेक प्रधान हैं और उत्कृष्ट स्थिति में काल।- देखें | <ul><li>जघन्य स्थिति में निषेक प्रधान हैं और उत्कृष्ट स्थिति में काल।-देखें [[ सत्त्व#2.5 | सत्त्व - 2.5]]।</li></ul> | ||
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<ul><li>मूलोत्तर प्रकृति की स्थितिबन्ध व बन्धकों सम्बन्धी संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव व अल्पबहुत्व रूप आठ प्ररूपणाएँ।- | <ul><li>मूलोत्तर प्रकृति की स्थितिबन्ध व बन्धकों सम्बन्धी संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव व अल्पबहुत्व रूप आठ प्ररूपणाएँ।-देखें [[ वह वह नाम ]]।</li></ul> | ||
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Revision as of 21:49, 5 July 2020
अवस्थान काल का नाम स्थिति है। बन्ध काल से लेकर प्रतिसमय एक एक करके कर्म उदय में आ आकर खिरते रहते हैं। इस प्रकार जब तक उस समय में बन्धा सर्व द्रव्य समाप्त हो, उतना उतना काल उस कर्म की स्थिति है। और प्रतिसमय वह खिरने वाला द्रव्य निषेक कहलाता है। सम्पूर्ण स्थिति में एक-एक के पीछे एक स्थित रहता है। सबसे पहिले निषेक में सबसे अधिक द्रव्य हैं, पीछे क्रम पूर्वक घटते-घटते अन्तिम निषेक में सर्वत्र स्तोक द्रव्य होता है। इसलिए स्थिति प्रकरण में कर्म निषेकों का यह त्रिकोण यन्त्र बन जाता है। कषाय आदि की तीव्रता के कारण संक्लेश परिणामों से अधिक और विशुद्ध परिणामों से हीन स्थिति बन्धती है।
- भेद व लक्षण
- स्थिति बन्ध अध्यवसाय स्थान।-देखें अध्यवसाय ।
- उत्कृष्ट व सर्व स्थिति आदि में अन्तर।-देखें अनुयोग - 3.2।
- अग्र व उपरितन स्थिति के लक्षण।
- सान्तर व निरन्तर स्थिति के लक्षण।
- प्रथम व द्वितीय स्थिति के लक्षण।
- सादि अनादि स्थिति के लक्षण।
- विचार स्थान का लक्षण।
- जीवों की स्थिति।-देखें आयु ।
- स्थितिबन्ध निर्देश
- स्थितिबन्ध में चार अनुयोग द्वार।
- भवस्थिति व कायस्थिति में अन्तर।
- एकसमयिक बन्ध को बन्ध नहीं कहते।
- स्थिति व अनुभाग बन्ध की प्रधानता।
- स्थितिबन्ध का कारण कषाय है।-देखें बन्ध - 5.1।
- स्थिति (काल) की ओघ आदेश प्ररूपणा।-देखें काल - 5,6।
- निषेक रचना
- निषेकों की त्रिकोण रचना का आकार।-देखें उदय - 3।
- उत्कृष्ट व जघन्य स्थितिबन्ध सम्बन्धी नियम
- जघन्य स्थिति में निषेक प्रधान हैं और उत्कृष्ट स्थिति में काल।-देखें सत्त्व - 2.5।
- मरण समय उत्कृष्ट बन्ध सम्भव नहीं।
- स्थितिबन्ध में संक्लेश विशुद्ध परिणामों का स्थान।
- मोहनीय का उत्कृष्ट स्थितिबन्धक कौन।
- उत्कृष्ट अनुभाग के साथ उत्कृष्ट स्थिति बन्ध की व्याप्ति।
- स्थिति व प्रदेश बन्ध में अन्तर-देखें प्रदेश बन्ध ।
- उत्कृष्ट स्थिति बन्ध का अन्तरकाल।
- जघन्य स्थितिबन्ध में गुणहानि सम्भव नहीं।
- साता व तीर्थंकर प्रकृतियों का ज.उ.स्थितिबन्ध सम्बन्धी दृष्टि भेद।
- ईर्यापथ कर्म की स्थिति सम्बन्धी-देखें ईर्यापथ ।
- जघन्य व उत्कृष्ट स्थिति सत्त्व के स्वामी।-देखें सत्त्व - 2।
- स्थितिबन्ध सम्बन्धी शंका समाधान
- स्थितिबन्ध प्ररूपणा
- मूलोत्तर प्रकृतियों की जघन्योत्कृष्ट आबाधा व स्थिति तथा उनका स्वामित्व।
- इन्द्रिय मार्गणा की अपेक्षा प्रकृतियों की उ.ज.स्थिति की सारणी।
- उत्कृष्ट व जघन्य स्थिति, प्रदेश व अनुभाग के बन्धों की प्ररूपणा।
- अन्य प्ररूपणाओं सम्बन्धी सूची।
- मूलोत्तर प्रकृति की स्थितिबन्ध व बन्धकों सम्बन्धी संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव व अल्पबहुत्व रूप आठ प्ररूपणाएँ।-देखें वह वह नाम ।