संबंध: Difference between revisions
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<p class="HindiText"><strong>3. | <p class="HindiText"><strong>3. संबंध के भेदों के लक्षण</strong></p> | ||
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<p class="HindiText">2. व्याप्य - व्यापक</p> | <p class="HindiText">2. व्याप्य - व्यापक</p> | ||
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<p> <span class="SanskritText"> न्यायदीपिका/3/67/106/5 साहचर्यनियमरूपां व्याप्तिक्रियां प्रति यत्कर्म तद्वयाप्यम् ...एतामेव व्याप्तिक्रियां प्रति यत्कर्तृ तद्व्यापकम् ...एवं सति धूममग्निव्याप्नोति, ...धूमस्तु न तथाऽग्निं व्याप्नोति - ।</span> =<span class="HindiText">साहचर्य नियमरूप व्याप्तिक्रिया का जो कर्म है उसे व्याप्य कहते हैं,...व्याप्ति का जो कर्म है - विषय है वह व्याप्य कहलाता है।...अग्नि धूम को व्याप्त करती है, | <p> <span class="SanskritText"> न्यायदीपिका/3/67/106/5 साहचर्यनियमरूपां व्याप्तिक्रियां प्रति यत्कर्म तद्वयाप्यम् ...एतामेव व्याप्तिक्रियां प्रति यत्कर्तृ तद्व्यापकम् ...एवं सति धूममग्निव्याप्नोति, ...धूमस्तु न तथाऽग्निं व्याप्नोति - ।</span> =<span class="HindiText">साहचर्य नियमरूप व्याप्तिक्रिया का जो कर्म है उसे व्याप्य कहते हैं,...व्याप्ति का जो कर्म है - विषय है वह व्याप्य कहलाता है।...अग्नि धूम को व्याप्त करती है, किंतु धूम अग्नि को व्याप्त नहीं करता।</span></p> | ||
<p class="HindiText">3. ज्ञेय ज्ञायक व ग्राह्य-ग्राहक</p> | <p class="HindiText">3. ज्ञेय ज्ञायक व ग्राह्य-ग्राहक</p> | ||
<p> <span class="SanskritText"> समयसार / आत्मख्याति/31 | <p> <span class="SanskritText"> समयसार / आत्मख्याति/31 ग्राह्यग्राहकलक्षणसंबंधप्रत्यासत्तिवशेन...भावेंद्रियावगृह्यमानस्पर्शादीनींद्रियार्थां...ज्ञेयज्ञायक संकरदोषत्वेनैव।</span> =<span class="HindiText">ग्राह्यग्राहक लक्षण वाले संबंध की निकटता के कारण...भावेंद्रियों के द्वारा (ग्राहक) ग्रहण किये हुए, इंद्रियों के विषयभूत स्पर्शादि पदार्थों को (ग्राह्य पदार्थों को)...। ज्ञेय (बाह्य पदार्थ) ज्ञायक (जाननेवाला) आत्मा-संकर नामक दोष...।</span></p> | ||
<p class="HindiText">4. आधार-आधेय | <p class="HindiText">4. आधार-आधेय संबंध</p> | ||
<p> <span class="SanskritText"> समयसार / आत्मख्याति/181-183 न खल्वेकस्य द्वितीयमस्ति द्वयोर्भिन्नप्रदेशत्वेनैकसत्तानुपपत्ते:, तदसत्वे च तेन | <p> <span class="SanskritText"> समयसार / आत्मख्याति/181-183 न खल्वेकस्य द्वितीयमस्ति द्वयोर्भिन्नप्रदेशत्वेनैकसत्तानुपपत्ते:, तदसत्वे च तेन सहाधाराधेयसंबंधोऽपि नास्त्येव, तत: स्वरूपप्रतिष्ठत्वलक्षण एवाधाराधेयसंबंधोऽवतिष्ठते।</span>=<span class="HindiText">वास्तव में एक वस्तु की दूसरी वस्तु नहीं है, क्योंकि दोनों के प्रदेश भिन्न हैं, इसलिए उनमें एक सत्ता की अनुपपत्ति है, इस प्रकार जबकि एक वस्तु की दूसरी वस्तु नहीं है तब उनमें परस्पर आधार (जिसमें रहा जाये) आधेय (जो आश्रय लेवे) संबंध भी नहीं है। स्व स्वरूप में प्रतिष्ठित वस्तु में आधार-आधेय संबंध है।</span></p> | ||
<p class="HindiText"><strong>4. अन्य | <p class="HindiText"><strong>4. अन्य संबंधित विषय</strong></p> | ||
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<li>संयोग आदि अन्य | <li>संयोग आदि अन्य संबंधों के लक्षण। - देखें [[ वह वह नाम ]]।</li> | ||
<li>संश्लेष | <li>संश्लेष संबंध। - देखें [[ श्लेष ]]।</li> | ||
<li> | <li>संबंध की अपेक्षा वस्तु में भेदाभेद। - देखें [[ सप्तभंगी#5 | सप्तभंगी - 5]]।</li> | ||
<li>भिन्न द्रव्यों में आध्यात्मिक भेदाभेद। - देखें [[ कारक#2 | कारक - 2]]।</li> | <li>भिन्न द्रव्यों में आध्यात्मिक भेदाभेद। - देखें [[ कारक#2 | कारक - 2]]।</li> | ||
<li>द्रव्य गुण पर्यायों में युत सिद्ध व समवाय | <li>द्रव्य गुण पर्यायों में युत सिद्ध व समवाय संबंध का निषेध। - देखें [[ द्रव्य#4 | द्रव्य - 4]]।</li> | ||
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Revision as of 16:40, 19 August 2020
1. संबंध सामान्य का लक्षण
नयचक्र बृहद्/225 संबंधो संसिलेसो णाणीयं णाणणेय मादीहिं=ज्ञानी का ज्ञान और ज्ञेय का संसिलेश सो संबंध है।
राजवार्तिक/ हिं.1/7/64 प्रत्यासत्ति है सो ही संबंध है।
राजवार्तिक हिं/4/42/20/1187 जहाँ पर अभेद प्रधान और भेद गौण होता है वहाँ पर संबंध समझना चाहिए।
2. संबंध के भेद
[आगम में अनेकों संबंधों का निर्देश पाया जाता है। यथा - 1. ज्ञेय-ज्ञायक संबंध, ग्राह्य-ग्राहक संबंध ( समयसार / आत्मख्याति/31 ); भाव्य - भावक संबंध ( समयसार / आत्मख्याति/32,83 ); तादात्म्य संबंध ( समयसार / आत्मख्याति/57,61 ); संश्लेष संबंध ( समयसार / तात्पर्यवृत्ति/57 ); व्याप्य-व्यापक संबंध ( समयसार / आत्मख्याति/75 ); आधार-आधेय संबंध ( समयसार / आत्मख्याति/181-183 ); ( पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/350 ); आश्रय-आश्रयी ( पंचाध्यायी x`/ पृ./76); संयोग संबंध। सो दो प्रकार का है - देश प्रत्यासत्तिक संयोग संबंध; और गुण प्रत्यासत्तिक संयोग संबंध ( धवला 14/2,6,23/27/2 ); ( पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/76 ); धर्म-धर्मि में अविनाभाव संबंध ( पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/7,545,591,99,249 ); लक्ष्य-लक्षण संबंध ( पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/12,88,616 ); साध्य-साधक संबंध ( पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/545 ); दंड - दंडी संबंध ( पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/41 ); समवाय संबंध ( पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/76 ); भविष्याभाव संबंध (स.म9/217/24);] [इनके अतिरिक्त बाध्य-बाधक संबंध, बध्य-घातक संबंध, कार्य-कारण संबंध, वाच्य-वाचक संबंध, उपकार्य-उपकारक संबंध, प्रतिबध्य-प्रतिबंधक समबंध, पूर्वापर संबंध, द्योत्य-द्योतक संबंध, व्यंग्य-व्यंजक संबंध, प्रकाश्य-प्रकाशक संबंध, उपादान-उपादेय संबंध, निमित्त-नैमित्तिक संबंध इत्यादि अनेकों संबंधों का कथन आगम में अनेकों स्थलों पर किया गया है।]
3. संबंध के भेदों के लक्षण
1. भाव्य-भावक
समयसार / आत्मख्याति/32 भावकत्वेन भवंतमपि दूरत एव तदनुवृत्तेरात्मनो भाव्यस्य व्यावर्तनेन - । =(मोहकर्म) भावकपने से प्रगट होता है तथापि तदनुसार जिसकी प्रवृत्ति है ऐसा जो अपना आत्माभाव्य...।
2. व्याप्य - व्यापक
समयसार / आत्मख्याति/75 घटमृत्तिकयोरिव व्याप्यव्यापक भाव...। =घड़े और मिट्टी के व्याप्य-व्यापकभाव का सद्भाव...।
न्यायदीपिका/3/67/106/5 साहचर्यनियमरूपां व्याप्तिक्रियां प्रति यत्कर्म तद्वयाप्यम् ...एतामेव व्याप्तिक्रियां प्रति यत्कर्तृ तद्व्यापकम् ...एवं सति धूममग्निव्याप्नोति, ...धूमस्तु न तथाऽग्निं व्याप्नोति - । =साहचर्य नियमरूप व्याप्तिक्रिया का जो कर्म है उसे व्याप्य कहते हैं,...व्याप्ति का जो कर्म है - विषय है वह व्याप्य कहलाता है।...अग्नि धूम को व्याप्त करती है, किंतु धूम अग्नि को व्याप्त नहीं करता।
3. ज्ञेय ज्ञायक व ग्राह्य-ग्राहक
समयसार / आत्मख्याति/31 ग्राह्यग्राहकलक्षणसंबंधप्रत्यासत्तिवशेन...भावेंद्रियावगृह्यमानस्पर्शादीनींद्रियार्थां...ज्ञेयज्ञायक संकरदोषत्वेनैव। =ग्राह्यग्राहक लक्षण वाले संबंध की निकटता के कारण...भावेंद्रियों के द्वारा (ग्राहक) ग्रहण किये हुए, इंद्रियों के विषयभूत स्पर्शादि पदार्थों को (ग्राह्य पदार्थों को)...। ज्ञेय (बाह्य पदार्थ) ज्ञायक (जाननेवाला) आत्मा-संकर नामक दोष...।
4. आधार-आधेय संबंध
समयसार / आत्मख्याति/181-183 न खल्वेकस्य द्वितीयमस्ति द्वयोर्भिन्नप्रदेशत्वेनैकसत्तानुपपत्ते:, तदसत्वे च तेन सहाधाराधेयसंबंधोऽपि नास्त्येव, तत: स्वरूपप्रतिष्ठत्वलक्षण एवाधाराधेयसंबंधोऽवतिष्ठते।=वास्तव में एक वस्तु की दूसरी वस्तु नहीं है, क्योंकि दोनों के प्रदेश भिन्न हैं, इसलिए उनमें एक सत्ता की अनुपपत्ति है, इस प्रकार जबकि एक वस्तु की दूसरी वस्तु नहीं है तब उनमें परस्पर आधार (जिसमें रहा जाये) आधेय (जो आश्रय लेवे) संबंध भी नहीं है। स्व स्वरूप में प्रतिष्ठित वस्तु में आधार-आधेय संबंध है।
4. अन्य संबंधित विषय
- संयोग आदि अन्य संबंधों के लक्षण। - देखें वह वह नाम ।
- संश्लेष संबंध। - देखें श्लेष ।
- संबंध की अपेक्षा वस्तु में भेदाभेद। - देखें सप्तभंगी - 5।
- भिन्न द्रव्यों में आध्यात्मिक भेदाभेद। - देखें कारक - 2।
- द्रव्य गुण पर्यायों में युत सिद्ध व समवाय संबंध का निषेध। - देखें द्रव्य - 4।