जल गालन: Difference between revisions
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<span class="GRef"> भावपाहुड़ टीका/111/261/21 </span><span class="SanskritText">वर्षाकाले तरुमूले तिष्ठ। वृक्षपर्णोपरि पतित्वा यज्जलं यत्युपरि पतति तस्य प्रासुकत्वाद्विराधाप्कायिकानां जीवानां न भवति।</span> =<span class="HindiText">यतिजन वर्षाऋतु में वर्षायोग धारण करते हैं। वर्षाकाल में वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान करते हैं। उस समय वृक्ष के पत्तों पर पड़ा हुआ वर्षा का जो जल यति के शरीर पर पड़ता है उससे उसको अप्कायिक जीवों की विराधना का दोष नहीं लगता, क्योंकि वह जल प्रासुक होता है।<br /> | |||
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देखें [[ आहार#II.4.4.3 | आहार - II.4.4.3 ]]तिल, चावल, तुष या चना आदि का धोया हुआ जल अथवा गरम करके ठंडा हो गया जल या हरड़ आदि से अपरिणत जल, उसे लेने से साधु को अपरिणत दोष लगता है।<br /> | देखें [[ आहार#II.4.4.3 | आहार - II.4.4.3 ]]तिल, चावल, तुष या चना आदि का धोया हुआ जल अथवा गरम करके ठंडा हो गया जल या हरड़ आदि से अपरिणत जल, उसे लेने से साधु को अपरिणत दोष लगता है।<br /> | ||
<span class="GRef"> भगवती आराधना </span>हि.पं.दौलतराम/250/पृ.126 या पृ.110 तिलनि के प्रक्षालिन का जल, तथा चावल धोवने का जल तथा जो जल तप्त होय करि ठंडा हो गया होय तथा चणा के धोवने का जल तथा तुष धोवने का जल तथा हरड़ का चूर्ण जामें मिला होय, ऐसा जो आपका रस गंधकूं नहीं पलटया, सो अपरिणत दोष सहित है। अर जो वर्ण रस गंध इत्यादि जामें पलटि गया होय सो परिणत है, साधु के लेने योग्य है।<br /> | |||
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<span class="GRef"> लाटी संहिता/2/23 </span><span class="SanskritGatha">गालितं दृढवस्त्रेण सर्पिस्तैलं पयो द्रवम् । तोयं जिनागमाम्नायाहारेत्स न चान्यथा।23।</span> =<span class="HindiText">घी, तेल, दूध, पानी आदि पतले पदार्थों को बिना छाने कभी काम में नहीं लाना चाहिए।<br /> | |||
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<span class="GRef"> सागार धर्मामृत/3/16 </span><span class="SanskritText"> मुहूर्तयुग्मोर्ध्वमगालनम् ।</span>=<span class="HindiText">छने हुए पानी को भी दो मुहूर्त अर्थात् चार घड़ी पीछे छाना हुआ नहीं मानना चाहिए।<br /> | |||
<span class="GRef"> श्लोकवार्तिक/2/1/2/12/35/28/ </span>भाषाकार पं.माणिकचंद। =दो घड़ी पीछे जल को पुन: छानना चाहिए।<br /> | |||
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<li><span class="HindiText"><strong name="2.3" id="2.3">जल छानकर उसकी जिवानी करने की विधि</strong></span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2.3" id="2.3">जल छानकर उसकी जिवानी करने की विधि</strong></span><br /> | ||
<span class="GRef"> सागार धर्मामृत/3/16 </span><span class="SanskritText"> अन्यत्र वा गालितशेषितस्य न्यासो निपानेऽस्य न तद्व्रतेऽर्च्य:।16। </span><span class="HindiText">=छानने के पश्चात् शेष बचे हुए जल को जिस स्थान का जल है उसमें न डालकर अन्य जलाशय में छोड़ना (या वैसे ही नाली में बहा देना) जलगालनव्रत में योग्य नहीं।<br /> | |||
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<li><span class="HindiText"><strong name="2.4" id="2.4"> छलने का प्रमाण व स्वरूप</strong></span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2.4" id="2.4"> छलने का प्रमाण व स्वरूप</strong></span><br /> | ||
<span class="GRef"> सागार धर्मामृत/3/16 </span><span class="SanskritText"> वा दुर्वाससा गालनमंबुनो ...स तद्व्रतेऽर्च्य:। </span><span class="HindiText">छोटे, छेदवाले या पुराने कपड़े से छानना योग्य नहीं।</span><br /> | |||
<span class="GRef"> लाटी संहिता/2/23 </span><span class="SanskritText"> गालितं दृढ़वस्त्रेण। </span>=<span class="HindiText">घी, तेल, जल आदि को दृढ़ वस्त्र में से छानना चाहिए।<br /> | |||
व्रत.विधानसंग्रह/30 पर उद्धृत</span>-<span class="SanskritText">षट्त्रिंशदंगुलं वस्त्रं चतुर्विंशतिविस्तृतम् । तद्वस्त्रं द्विगुणीकृत्य तोयं तेन तु गालयेत् ।</span>=<span class="HindiText">36 अंगुल लंबे और 24 अंगुल चौड़े वस्त्र को दोहरा करके उसमें से जल छानना चाहिए।<br /> | व्रत.विधानसंग्रह/30 पर उद्धृत</span>-<span class="SanskritText">षट्त्रिंशदंगुलं वस्त्रं चतुर्विंशतिविस्तृतम् । तद्वस्त्रं द्विगुणीकृत्य तोयं तेन तु गालयेत् ।</span>=<span class="HindiText">36 अंगुल लंबे और 24 अंगुल चौड़े वस्त्र को दोहरा करके उसमें से जल छानना चाहिए।<br /> | ||
क्रिया कोष/पं.दौलतराम/244 रंगे वस्त्र न छाने नीरा। पहिरे वस्त्र न गाले वीरा।244। =रंगे हुए वा पहने हुए वस्त्र में से जल नहीं छानना चाहिए।<br /> | क्रिया कोष/पं.दौलतराम/244 रंगे वस्त्र न छाने नीरा। पहिरे वस्त्र न गाले वीरा।244। =रंगे हुए वा पहने हुए वस्त्र में से जल नहीं छानना चाहिए।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="2.5" id="2.5"> जल गालन के अतिचार</strong></span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2.5" id="2.5"> जल गालन के अतिचार</strong></span><br /> | ||
<span class="GRef"> सागार धर्मामृत/3/16 </span><span class="SanskritText"> मुहूर्तयुग्मोर्ध्वमगालनं वा दुर्वाससा गालनमंबुनो वा। अन्यत्र वा गालितशेषितस्य न्यासो निपाने। </span>=<span class="HindiText">छने हुए पानी को भी दो मुहूर्त अर्थात् चार घड़ी पीछे नहीं छानना, तथा छोटे, छेदवाले, मैले, और पुराने कपड़े से छानना; और छानने के पश्चात् बचे हुए पानी को किसी दूसरे जलाशय में डालना। ये जलगालन व्रत के अतिचार हैं, दार्शनिक श्रावक को ये नहीं लगाने चाहिए।<br /> | |||
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<li><span class="HindiText"><strong name="2.6" id="2.6"> जल गालन का कारण जल में सूक्ष्म जीवों का सद्भाव</strong><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2.6" id="2.6"> जल गालन का कारण जल में सूक्ष्म जीवों का सद्भाव</strong><br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="2.7" id="2.7"> जल गालन का प्रयोजन राग व हिंसा का वर्जन</strong></span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="2.7" id="2.7"> जल गालन का प्रयोजन राग व हिंसा का वर्जन</strong></span><br /> | ||
<span class="GRef"> सागार धर्मामृत/2/14 </span><span class="SanskritGatha"> रागजीववधापायं भूयस्त्वात्तद्वदुत्सृजेत् । रात्रिभक्तं तथा युंज्यान्न पानीयमगालितम् ।14। </span>=<span class="HindiText">धर्मात्मा पुरुषों को मद्यादि की तरह, राग तथा जीवहिंसा से बचने के लिए रात्रिभोजन का त्याग करना चाहिए। जो दोष रात्रि भोजन में लगते हैं वही दोष अगालित पेय पदार्थों में भी लगते हैं, यह जानकर बिना छने जल, दूध, घी, तेल आदि पेय पदार्थों का भी उनको त्याग करना चाहिए। और भी देखें [[ रात्रि भोजन ]]।</span></li> | |||
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Revision as of 13:00, 14 October 2020
जैन मार्ग में जल को छानकर ही प्रयोग में लाना, यह एक बड़ा गौरवशाली धर्म समझा जाता है। जल की शुद्धि, अशुद्धि संबंधी नियम इस प्रकार में निर्दिष्ट हैं।
- प्रासुक जल निर्देश
- वर्षा का जल प्रासुक है
भावपाहुड़ टीका/111/261/21 वर्षाकाले तरुमूले तिष्ठ। वृक्षपर्णोपरि पतित्वा यज्जलं यत्युपरि पतति तस्य प्रासुकत्वाद्विराधाप्कायिकानां जीवानां न भवति। =यतिजन वर्षाऋतु में वर्षायोग धारण करते हैं। वर्षाकाल में वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान करते हैं। उस समय वृक्ष के पत्तों पर पड़ा हुआ वर्षा का जो जल यति के शरीर पर पड़ता है उससे उसको अप्कायिक जीवों की विराधना का दोष नहीं लगता, क्योंकि वह जल प्रासुक होता है।
- रूप रस परिणत ही ठंडा जल प्रासुक होता है
देखें आहार - II.4.4.3 तिल, चावल, तुष या चना आदि का धोया हुआ जल अथवा गरम करके ठंडा हो गया जल या हरड़ आदि से अपरिणत जल, उसे लेने से साधु को अपरिणत दोष लगता है।
भगवती आराधना हि.पं.दौलतराम/250/पृ.126 या पृ.110 तिलनि के प्रक्षालिन का जल, तथा चावल धोवने का जल तथा जो जल तप्त होय करि ठंडा हो गया होय तथा चणा के धोवने का जल तथा तुष धोवने का जल तथा हरड़ का चूर्ण जामें मिला होय, ऐसा जो आपका रस गंधकूं नहीं पलटया, सो अपरिणत दोष सहित है। अर जो वर्ण रस गंध इत्यादि जामें पलटि गया होय सो परिणत है, साधु के लेने योग्य है।
- गर्म जल प्रासुक होता है–देखें जल गालन - 1.4।
- शौच व स्नान के लिए तो ताड़ित जल या बावड़ी का ताजा जल भी प्रासुक है
रत्नमाला/63/64 पाषाणोत्स्फरितं तोयं घटीयंत्रेण ताडितम् । सद्य: संतप्तवापीनां प्रासुकं जलमुच्यते।63। देवर्षीणां प्रशौचाय स्नानाय च गृहस्थिनाम् । अप्रासुकं परं वारि महातीर्थजमप्यद:।64। =पाषाण को फोड़कर निकला हुआ अर्थात् पर्वतीय झरनों का, अथवा रहट द्वारा ताड़ित हुआ और वापियों का गरम-गरम ताजा जल प्रासुक है। इसके सिवाय अन्य सब जल, चाहे महातीर्थ गंगा आदि का क्यों न हो, अप्रासुक है।63। यह जल देवर्षियों को तो शौच के लिए और गृहस्थों को स्नान के लिए वर्जनीय नहीं है।64।
- जल को प्रासुक करने की विधि व उसकी मर्यादा
व्रत विधान संग्रह/31 पर उद्धृत रत्नमाला का श्लोक–मुहूर्तं गालितं तोयं प्रासुकं प्रहरद्वयम् । उष्णोदमहोरात्रमगालितमिवोच्यते। =छना हुआ जल दो घड़ी तक, हरड़े आदि से प्रासुक किया गया (देखो ऊपर नं.2) दो पहर या छह घंटे तक तथा उबला हुआ जल 24 घंटे तक प्रासुक या पीने योग्य रहता है, और उसके पश्चात् बिना छने के समान हो जाते हैं।
- वर्षा का जल प्रासुक है
- जल का वर्ण धवल ही होता है–देखें लेश्या - 3।
- जल गालन निर्देश
- सभी तरल पदार्थ छानकर प्रयोग में लाने चाहिए
लाटी संहिता/2/23 गालितं दृढवस्त्रेण सर्पिस्तैलं पयो द्रवम् । तोयं जिनागमाम्नायाहारेत्स न चान्यथा।23। =घी, तेल, दूध, पानी आदि पतले पदार्थों को बिना छाने कभी काम में नहीं लाना चाहिए।
- दो घड़ी पीछे पुन: छानने चाहिए
सागार धर्मामृत/3/16 मुहूर्तयुग्मोर्ध्वमगालनम् ।=छने हुए पानी को भी दो मुहूर्त अर्थात् चार घड़ी पीछे छाना हुआ नहीं मानना चाहिए।
श्लोकवार्तिक/2/1/2/12/35/28/ भाषाकार पं.माणिकचंद। =दो घड़ी पीछे जल को पुन: छानना चाहिए।
- जल छानकर उसकी जिवानी करने की विधि
सागार धर्मामृत/3/16 अन्यत्र वा गालितशेषितस्य न्यासो निपानेऽस्य न तद्व्रतेऽर्च्य:।16। =छानने के पश्चात् शेष बचे हुए जल को जिस स्थान का जल है उसमें न डालकर अन्य जलाशय में छोड़ना (या वैसे ही नाली में बहा देना) जलगालनव्रत में योग्य नहीं।
- छलने का प्रमाण व स्वरूप
सागार धर्मामृत/3/16 वा दुर्वाससा गालनमंबुनो ...स तद्व्रतेऽर्च्य:। छोटे, छेदवाले या पुराने कपड़े से छानना योग्य नहीं।
लाटी संहिता/2/23 गालितं दृढ़वस्त्रेण। =घी, तेल, जल आदि को दृढ़ वस्त्र में से छानना चाहिए।
व्रत.विधानसंग्रह/30 पर उद्धृत-षट्त्रिंशदंगुलं वस्त्रं चतुर्विंशतिविस्तृतम् । तद्वस्त्रं द्विगुणीकृत्य तोयं तेन तु गालयेत् ।=36 अंगुल लंबे और 24 अंगुल चौड़े वस्त्र को दोहरा करके उसमें से जल छानना चाहिए।
क्रिया कोष/पं.दौलतराम/244 रंगे वस्त्र न छाने नीरा। पहिरे वस्त्र न गाले वीरा।244। =रंगे हुए वा पहने हुए वस्त्र में से जल नहीं छानना चाहिए।
- जल गालन के अतिचार
सागार धर्मामृत/3/16 मुहूर्तयुग्मोर्ध्वमगालनं वा दुर्वाससा गालनमंबुनो वा। अन्यत्र वा गालितशेषितस्य न्यासो निपाने। =छने हुए पानी को भी दो मुहूर्त अर्थात् चार घड़ी पीछे नहीं छानना, तथा छोटे, छेदवाले, मैले, और पुराने कपड़े से छानना; और छानने के पश्चात् बचे हुए पानी को किसी दूसरे जलाशय में डालना। ये जलगालन व्रत के अतिचार हैं, दार्शनिक श्रावक को ये नहीं लगाने चाहिए।
- जल गालन का कारण जल में सूक्ष्म जीवों का सद्भाव
व्रत.विधान संग्रह 31 पर उद्धृत–एक बिंदूद्भवा जीवा: पारावत्समा यदि। भूत्वोच्चरंति चेज्जंबूद्वीपोऽपि पूर्यते च तै:। =जल की एक बूँद में जितने जीव हैं वे कबूतर के बराबर होकर यदि उड़े तो उनके द्वारा यह जंबूद्वीप लबालब भर जाये।
जगदीशचंद्र बोस–(एक बूँद जल में आधुनिक विज्ञान के आधार पर उन्होंने 39450 बैक्टेरिया जीवों की सिद्धि की है। इनके अतिरिक्त जिन जलकायिक जीवों के शरीररूप वह बिंदू है वे उनकी दृष्टि का विषय ही नहीं है। उनका प्रमाण अंगुल असं.आगम में कहा गया है)।
- जल गालन का प्रयोजन राग व हिंसा का वर्जन
सागार धर्मामृत/2/14 रागजीववधापायं भूयस्त्वात्तद्वदुत्सृजेत् । रात्रिभक्तं तथा युंज्यान्न पानीयमगालितम् ।14। =धर्मात्मा पुरुषों को मद्यादि की तरह, राग तथा जीवहिंसा से बचने के लिए रात्रिभोजन का त्याग करना चाहिए। जो दोष रात्रि भोजन में लगते हैं वही दोष अगालित पेय पदार्थों में भी लगते हैं, यह जानकर बिना छने जल, दूध, घी, तेल आदि पेय पदार्थों का भी उनको त्याग करना चाहिए। और भी देखें रात्रि भोजन ।
- सभी तरल पदार्थ छानकर प्रयोग में लाने चाहिए