पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 102 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p> | <p><span class="AnvayArth">एवं</span> पूर्वोक्त प्रकार से, <span class="AnvayArth">वियाणित्ता</span> पहले विशेष-रूप से जानकर । किसे जानकर ? <span class="AnvayArth">पंचत्थियसंगहं</span> पंचास्तिकाय-संग्रह नामक ग्रंथ को जानकर । किस विशेषतावाले ग्रन्थ को जानकर? <span class="AnvayArth">पवयणसारं</span> प्रवचन के सार-भूत, पंचास्तिकाय, षड्द्रव्य का संक्षेप से प्रतिपादक होने के कारण, अथवा मुख्य-रूप से परम-समाधिरतों को मोक्ष-मार्ग-रूप से सार-भूत शुद्ध जीवास्तिकाय का प्रतिपादक होने से, द्वादशांग-रूप से विस्तृत होने पर भी प्रवचन के सारभूत इस ग्रन्थ को जानकर । इसे जानकर क्या करता है ? <span class="AnvayArth">जो मुयदि</span> कर्ता-रूप जो छोडता है । कर्मता को प्राप्त किन्हें छोडता है ? <span class="AnvayArth">रायदोसे</span> अनंत ज्ञानादि गुण सहित वीतराग परमात्मा से विलक्षण, हर्ष-विषाद लक्षण-वाले और आगामी रागादि दोषों को उत्पन्न करने-वाले कर्मास्रव के जनक राग-द्वेष दोनों को छोडता है; सो वह पूर्वोक्त ध्याता <span class="AnvayArth">गाहदि</span> प्राप्त होता है । वह किसे प्राप्त करता है ? <span class="AnvayArth">दुक्खपरिमोक्खं</span> निर्विकार आत्मोपलब्धि-रूप भावना से उत्पन्न परम आह्लाद एक लक्षण सुखामृत से विपरीत, नानाप्रकार के शारीरिक-मानसिक रूप चतुर्गति-दु:ख के परिमोक्ष को, विनाश को प्राप्त होता है, ऐसा अभिप्राय है ॥११०॥</p> | ||
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Revision as of 16:51, 24 August 2021
एवं पूर्वोक्त प्रकार से, वियाणित्ता पहले विशेष-रूप से जानकर । किसे जानकर ? पंचत्थियसंगहं पंचास्तिकाय-संग्रह नामक ग्रंथ को जानकर । किस विशेषतावाले ग्रन्थ को जानकर? पवयणसारं प्रवचन के सार-भूत, पंचास्तिकाय, षड्द्रव्य का संक्षेप से प्रतिपादक होने के कारण, अथवा मुख्य-रूप से परम-समाधिरतों को मोक्ष-मार्ग-रूप से सार-भूत शुद्ध जीवास्तिकाय का प्रतिपादक होने से, द्वादशांग-रूप से विस्तृत होने पर भी प्रवचन के सारभूत इस ग्रन्थ को जानकर । इसे जानकर क्या करता है ? जो मुयदि कर्ता-रूप जो छोडता है । कर्मता को प्राप्त किन्हें छोडता है ? रायदोसे अनंत ज्ञानादि गुण सहित वीतराग परमात्मा से विलक्षण, हर्ष-विषाद लक्षण-वाले और आगामी रागादि दोषों को उत्पन्न करने-वाले कर्मास्रव के जनक राग-द्वेष दोनों को छोडता है; सो वह पूर्वोक्त ध्याता गाहदि प्राप्त होता है । वह किसे प्राप्त करता है ? दुक्खपरिमोक्खं निर्विकार आत्मोपलब्धि-रूप भावना से उत्पन्न परम आह्लाद एक लक्षण सुखामृत से विपरीत, नानाप्रकार के शारीरिक-मानसिक रूप चतुर्गति-दु:ख के परिमोक्ष को, विनाश को प्राप्त होता है, ऐसा अभिप्राय है ॥११०॥