श्री
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
- विजयार्ध की दक्षिण श्रेणी का एक नगर - देखें विद्याधर ;
- हिमवान् पर्वतस्थ एक कूट - देखें लोक - 5.4;
- हिमवान् पर्वतस्थ पद्मह्रद की स्वामिनी देवी - देखें लोक - 3.9;
- रुचक पर्वत निवासिनी दिक्कुमारी देवी - देखें लोक - 5.13;
- भरत के आर्य खंडस्थ एक पर्वत - देखें मनुष्य - 4।
पुराणकोष से
(1) रुचकगिरि के रुचककूट की रहने वाली दिक्कुमारी देवी । यह हाथ में चँमर लेकर जिनमाता की सेवा करती है । महापुराण 3. 112-113, 12.163-164, 38.222, हरिवंशपुराण - 5.716-717, 44. 11, वीरवर्द्धमान चरित्र 7.105-108
(2) विजयार्घ पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित गुंजानगर के राजा सिंहविक्रम की रानी । यह केवली सकलभूषण की जननी थी । पद्मपुराण - 104.103-117
(3) पद्मसरोवर के कमल पर बने भवन में रहने वाली व्यंतरेंद्र की देवी । महापुराण 32.121, 63.200, हरिवंशपुराण - 5.128-130
(4) छ: जिनमातृकाओं में एक मातृका देवी । यह प्रथम कुलाचल पर स्थित पद्म सरोवर के कमल पर रहती है । महापुराण 38.226
(5) त्रिशृंग नगर के राजा प्रचंडवाहन और रानी विमलप्रभा की दस पुत्रियों में चौथी पुत्री । ये सभी बहिनें पहले युधिष्ठिर के लिए प्रदान की गई थी, किंतु बाद में युधिष्ठिर के अन्यथा (मरण) समाचार सुनने पर ये अणुव्रत धारिणी श्राविकाऐं बन गयी थी । हरिवंशपुराण - 45.95-99
(6) भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक पर्वत । दिग्विजय के समय भरतेश के सेनापति ने यहाँ के राजा को पराजित किया था । महापुराण 29.90