GP:प्रवचनसार - गाथा 50 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, ऐसा निश्चित करते हैं कि क्रमशः प्रवर्तमान ज्ञान की सर्वगतता सिद्ध नहीं होती :-
जो ज्ञान क्रमश: एक एक पदार्थ का अवलम्बन लेकर प्रवृत्ति करता है वह (ज्ञान) एक पदार्थ के अवलम्बन से उत्पन्न होकर दूसरे पदार्थ के अवलम्बन से नष्ट हो जाने से नित्य नहीं होता तथा कर्मोदय के कारण एक *व्यक्ति को प्राप्त करके फिर अन्य व्यक्ति को प्राप्त करता है इसलिये क्षायिक भी न होता हुआ, वह अनन्त द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव को प्राप्त होने में (जानने में) असमर्थ होने के कारण सर्वगत नहीं है ॥५०॥
*व्यक्ति = प्रगटता विशेष, भेद