निकोत
From जैनकोष
अनन्त दुःखों का सागर निगोद । नास्तिक, दुराचारी, दुर्बुद्धि विषयासक्त और तीव्र मिथ्यात्वी जीव यहाँ उत्पन्न होते हैं और एक श्वास में अठारह बार होने वाले जन्म-मरण के महादु:ख भोगते हैं । वीरवर्द्धमान चरित्र 17.78-80
अनन्त दुःखों का सागर निगोद । नास्तिक, दुराचारी, दुर्बुद्धि विषयासक्त और तीव्र मिथ्यात्वी जीव यहाँ उत्पन्न होते हैं और एक श्वास में अठारह बार होने वाले जन्म-मरण के महादु:ख भोगते हैं । वीरवर्द्धमान चरित्र 17.78-80