सूत्रपाहुड गाथा 12
From जैनकोष
आगे फिर उनकी प्रवृत्ति का विशेष कहते हैं -
जे बावीसपरीसह सहंति सत्तीसएहिं संजुत्ता ।
ते होंति१ वंदणीया कम्मक्खयणिज्जरासाहू ।।१२।।
ये द्वाविंशतिपरीषहान् सहंते शक्तिशतै: संयुक्ता: ।
ते भवंति वंदनीया: कर्मक्षयनिर्जरासाधव: ।।१२।।
निजशक्ति से सम्पन्न जो बाइस परीषह को सहें ।
अर कर्म क्षय वा निर्जरा सम्पन्न मुनिजन वंद्य हैं ।।१२।।
अर्थ - जो साधु मुनि अपनी शक्ति के सैंकड़ों से युक्त होते हुए क्षुधा, तृषादिक बाईस परीषहों को सहते हैं और कर्मो की क्षयरूप निर्जरा करने में प्रवीण हैं, वे साधु वंदने योग्य हैं ।
भावार्थ - जो बड़ी शक्ति के धारक साधु हैं, वे परीषहों को सहते हैं, परीषह आने पर अपने पद से च्युत नहीं होते हैं, उनके कर्मो की निर्जरा होती है, वे वंदने योग्य हैं ।।१२।।