सूत्रपाहुड गाथा 23
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि वस्त्र धारक के मोक्ष नहीं है, मोक्षमार्ग नग्नपणा ही है -
ण वि सिज्झदि वत्थधरो जिणसासणे जइ वि होइ तित्थयरो ।
णग्गो विमोक्खमग्गो सेसा उम्मग्गया सव्वे ।।२३।।
नापि सिध्यति वस्त्रधर: जिनशासने
य द्य ि प भ व ि त त ी थ र्ं क र : ।
नग्न: विमोक्षमार्ग: शेषा उन्मार्गका: सर्वे ।।२३।।
सिद्ध ना हो वस्त्रधर वह तीर्थकर भी क्यों न हो ।
बस नग्नता ही मार्ग है अर शेष सब उन्मार्ग हैं ।।२३।।
अर्थ - जिनशासन में इसप्रकार कहा है कि वस्त्र को धारण करनेवाला सीझता नहीं है, मोक्ष नहीं पाता है, यदि तीर्थंकर भी हो तो जबतक गृहस्थ रहे तबतक मोक्ष नहीं पाता है, दीक्षा लेकर दिगम्बररूप धारण करे तब मोक्ष पावे; क्योंकि नग्नपना ही मोक्षमार्ग है, शेष सब लिंग उन्मार्ग है ।
भावार्थ - श्वेताम्बर आदि वस्त्रधारक के भी मोक्ष होना कहते हैं, वह मिथ्या है, यह जिनमत नहीं है ।।२३।।