आवरक व आवरण
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/4/380/3 आवृणोत्याव्रियतेऽनेनेति वा आवरणम्।
= जो आवृत करता है या जिसके द्वारा आवृत किया जाता है वह आवरण कहलाता है।
( गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/27/10)
धवला पुस्तक 6/1,9-1,5/8/5 अप्पणो विरोहिदव्वसण्णिहाणे संते वि जं णिम्मूलदो ण विणस्सदि, तमावरिज्जाणामं इदरं चावरयं।
= अपने विरोधी द्रव्यके सन्निधान अर्थात् सामीप्य होनेपर जो निर्मूलतः नहीं विनष्ट होता, उसे आव्रियमाण कहते हैं, और दूसरे अर्थात् आवरण करनेवाले विरोधी द्रव्यको आवरक कहते हैं।