मोक्षपाहुड गाथा 21
From जैनकोष
आगे इस अर्थ को दृष्टान्त द्वारा दृढ़ करते हैं -
जो जाइ जोयणसयं दियहेणेक्केण लेवि गुरुभारं ।
सो किं कोसद्धं पि हु ण सक्कए जाउ भुवणयले ।।२१।।
य: याति योजनशतं दिवसेनैकेने लात्वा गुरुभारम् ।
स किं क्रोशार्द्धपि स्फुटं न शक्नोति यातु भुवनतले ।।२१।।
गुरु भार लेकर एक दिन में जाँय जो योजन शतक ।
जावे न क्यों क्रोशार्द्ध में इस भुवनतल में लोक में ।।२१।।
अर्थ - जो पुरुष बड़ा भार लेकर एक दिन में सौ योजन चला जावे वह इस पृथ्वी तल पर आधा कोश क्या न चला जावे ? यही प्रगट-स्पष्ट जानो ।
भावार्थ - जो पुरुष बड़ा भार लेकर एक दिन में सौ योजन चले उसके आधा कोश चलना तो अत्यंत सुगम हुआ, ऐसे ही जिनमार्ग से मोक्ष पावे तो स्वर्ग पाना तो अत्यंत सुगम है ।।२१।।