योगसार - जीव-अधिकार गाथा 6
From जैनकोष
आत्मा का लक्षण उपयोग और उसके भेद -
उपयोगो विनिर्दिष्टस्तत्र लक्षणमात्मन: ।
द्वि-विधो दर्शन-ज्ञान-प्रभेदेन जिनाधिपै: ।।६।।
अन्वय :- तत्र जिनाधिपै: आत्मन: लक्षणं उपयोग: विनिर्दिष्ट: । (स: उपयोग:) दर्शनज्ञान- प्रभेदेन द्विविध: ।
सरलार्थ :- जीव एवं अजीव इन दो में से जीव अर्थात् आत्मा का लक्षण जिनेन्द्रदेव ने उपयोग कहा है । वह उपयोग दर्शन एवं ज्ञान के भेद से दो प्रकार का है । भावार्थ:- जीवादि सात तत्त्वों का यथार्थ निर्णय करने के लिये भेदज्ञान आवश्यक है और भेदज्ञान के लिये प्रत्येक द्रव्य की स्वतंत्रता का सच्चा ज्ञान चाहिए । द्र्रव्य की स्वतंत्रता का ज्ञान द्रव्य के लक्षणमूलक ज्ञान से ही सम्भव है, अन्य किसी दूसरों की भक्ति अथवा भावुकता या पुण्य से यह कार्य नहीं होता । इसलिए जीवादि द्रव्यों का ज्ञान, लक्षण के आधार से करना आवश्यक है । जीव का लक्षण उपयोग है - यह समयसार गाथा २४ एवं पंचास्तिकाय गाथा ४० में तथा तत्त्वार्थसूत्र अध्याय २ के ८वें सूत्र में भी आया है ।