योगसार - बन्ध-अधिकार गाथा 187
From जैनकोष
पापबन्ध के कारण -
निन्दकत्वं प्रतीक्ष्येषु नैर्घृण्यं सर्वजन्तुषु ।
निन्दिते चरणे राग: पाप-बन्ध-विधायक: ।।१८७।।
अन्वय :- प्रतीक्ष्येषु (अर्हत्-आदि पूज्येषु) निन्दकत्वं, सर्व-जन्तुषु नैर्घृण्यं, (च) निन्दिते चरणे राग: पाप-बन्ध विधायक: (भवति) ।
सरलार्थ :- अरहन्तादि पूज्य पुरुषों के सम्बन्ध में निन्दा का परिणाम, सर्व प्राणियों के प्रति निर्दयता का भाव और सप्त व्यसन, तीव्र हिंसादि पापरूप चारित्र संबंधी प्रीतिरूप भाव अर्थात् बहुान की प्रवृत्ति - ये सब पाप का बन्ध करनेवाले हैं ।