योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 448
From जैनकोष
वीतरागता से विवाद का अभाव -
ज्ञाते निर्वाण-तत्त्वेsस्मिन्नसंमोहेन तत्त्वत: ।
मुुक्षूणां न तद्युक्तौ विवाद उपपद्यते ।।४४८।।
अन्वय :- तत्त्वत: असंमोहेन ज्ञाते अस्मिन् निर्वाण-तत्त्वे मुुक्षूणां तद्युक्तौ विवाद: न उपपद्यते ।
सरलार्थ :- मोक्षतत्त्व को असंमोहरूप से अर्थात् वीतरागतापूर्वक यथार्थरूप से जानने पर मुुक्षुओं को मोक्षसंबंधी युक्तियों के कथन में विवाद अर्थात् मतभेद नहीं हो सकता ।