योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 268
From जैनकोष
भिन्न-भिन्न चक्षुधारक जीव -
साधूनामागमश्चक्षुर्भूतानां चक्षुरिन्द्रियम् ।
देवानामवधिश्चक्षुर्निर्वृता: सर्व-चक्षुष: ।।२६८।।
अन्वय :- साधूनां चक्षु: आगम:, भूतानां चक्षु: इन्द्रियं, देवानां चक्षु: अवधि: (भवति)। च निर्वृता: सर्व-चक्षुष: (भवन्ति) ।
सरलार्थ :- साधु अर्थात् मुनिराज आगमरूप चक्षुवाले हैं, सर्वजीव (संसारी) इंद्रिय चक्षुवाले हैं, देव अवधिचक्षुवाले हैं और सिद्ध भगवान सर्वत: चक्षु अर्थात् सर्व ओर से चक्षुवाले/सर्वात्मप्रदेशों से चक्षुवाले (सर्वज्ञ) हैं ।