योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 503
From जैनकोष
देह और आत्मा की सकारण भिन्नता -
देहात्मनो: सदा भेदो भिन्नज्ञानोपलम्भत: ।
इन्द्रियैर्ज्ञायते देहो नूनमात्मा स्वसंविदा ।।५०४।।
अन्वय : - भिन्नज्ञानोपलम्भत: देह-आत्मनो: सदा भेद: (भवति) । देह: इन्द्रियै: (ज्ञायते) आत्मा (च) नूनं स्वसंविदा (ज्ञायते) ।
सरलार्थ :- भिन्न-भिन्न ज्ञानों से उपलब्ध अर्थात् ज्ञात होने के कारण शरीर और आत्मा में सदा परस्पर भेद है । शरीर, इंद्रियों से अर्थात् इंद्रिय-निमित्तक मतिज्ञान से जाना जाता है और आत्मा निश्चय ही स्वसंवेदनज्ञान से जानने में आता है ।