योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 533
From जैनकोष
ज्ञानी का ज्ञेय से भेदज्ञान -
विज्ञाय दीपतो द्योत्यं यथा दीपो व्यपोह्यते ।
विज्ञाय ज्ञानतो ज्ञेयं तथा ज्ञानं व्यपोह्यते ।।५३४।।
अन्वय : - यथा दीपत: द्योत्यं (पदार्थं) विज्ञाय दीप: व्यपोह्यते; तथा ज्ञानत: ज्ञेयं विज्ञाय ज्ञानं व्यपोह्यते ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार समझदार मनुष्य दीपक से द्योत्य/देखने योग्य, प्रकाश्य अर्थात् प्रकाशित करने योग्य वस्तु को देखकर/जानकर दीपक को प्रकाश्यरूप वस्तु से भिन्न करते हैं; उसीप्रकार ज्ञान से ज्ञेय अर्थात् जाननेयोग्य वस्तु को जानकर ज्ञानी अपने ज्ञान को ज्ञेय से भिन्न करते/जानते हैं । (अर्थात् मैं तो जाननस्वरूप मात्र ज्ञाता हूँ; ऐसा मानते हैं ।)