भाद्रवन सिंहनिष्क्रिडित व्रत
From जैनकोष
निम्न प्रस्तार के अनुसार एक वृद्धि-क्रम से 1-13 तक उपवास करना, फिर एक हानि-क्रम से 13 से 1 तक उपवास करना। बीच के सर्व स्थानों में एकाशना या पारणा करना। प्रस्तार- 1,2,3,4,5,6,7,8,9, 10, 11, 12, 13, 13, 12,11, 10,9,8,7,6,5,4,3,2,1 = 175 । नमस्कार मत्र का त्रिकाल जाप करे। (व्रतविधान सं./पृ. 58)।