योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 89
From जैनकोष
दोनों को परस्पर का कर्ता मानने से आपत्ति -
एवं संपद्यते दोष: सर्वथापि दुरुत्तर: ।
चेतनाचेतनद्रव्यविशेषाभावलक्षण: ।।८९।।
अन्वय :- एवं (उपर्युक्तकथनानुसारं) चेतन-अचेतन-द्रव्यविशेष-अभावलक्षण: दोष: अपि संपद्यते (य:) सर्वथा दुरुत्तर: (अस्ति) ।
सरलार्थ :- इसप्रकार अर्थात् चेतन को अचेतन का और अचेतन को चेतन का उपादान कारण मानने से चेतन और अचेतन द्रव्य में कोई भेद न रहनेरूप दोष उपस्थित होता है, जो किसी तरह भी टाला नहीं जा सकता ।