योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 123
From जैनकोष
मिथ्यात्वादि कषाय ही आस्रव-बन्ध का कारण -
कषायस्रोतसागत्य जीवे कर्मावतिष्ठते ।
आगमेनेव पानीयं जाड्य-कारं सरोवरे ।।१२३।।
अन्वय :- सरोवरे (स्रोतसा) जाड्यकारं पानीयं आगमेन इव कषाय-स्रोतसा (जाड्यकारं) कर्म आगत्य जीवे अवतिष्ठते ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार सरोवर में स्रोतरूप नाली के द्वारा आकर शीतकारक जल ठहरता/ रुकता है, उसीप्रकार जीव में कषाय स्रोत से आकर जडताकारक कर्म ठहरता/रुकता है अर्थात् बन्ध को प्राप्त होता है ।