तामिस्र
From जैनकोष
पाँचवी नरकभूमि के पंचम प्रस्तार का इंद्रक बिल । इसकी चारों दिशाओं में बीस और विदिशाओं में सोलह श्रेणिबद्ध बिल है । इसका विस्तार चार लाख छियासठ हजार छ: सौ छियासठ योजन और एक योजन के तीन भागों में दो भाग प्रमाण होता है । इसकी जघन्य स्थिति एक सागर और एक सागर के पांच भागो से तीन भाग प्रमाण तथा उत्कृष्ट स्थिति सत्रह सागर प्रमाण है । यहाँ नारकी एक सौ पच्चीस धनुष ऊँचे होते हैं । हरिवंशपुराण 4.83, 142, 213, 289-290, 335