ग्रन्थ:बोधपाहुड़ गाथा 49
From जैनकोष
णिग्गंथा णिस्संगा णिम्माणासा अराय णिद्दोसा ।
णिम्मम णिरहंकारा पव्वज्ज एरिसा भणिया ॥४९॥
निर्ग्रन्था नि:सङ्गा निर्मानाशा अरागा निर्द्वेषा ।
निर्ममा निरहङ्कारा प्रव्रज्या ईदृशी भणिता ॥४९॥
आगे फिर कहते हैं -
हरिगीत
निर्ग्रन्थ है नि:संग है निर्मान है नीराग है ।
निर्दोष है निरआश है जिन प्रव्रज्या ऐसी कही ॥४९॥
अन्यमती भेष पहिनकर उसी मात्र को दीक्षा मानते हैं, वह दीक्षा नहीं है, जैनदीक्षा इसप्रकार कही है ॥४९॥