क्रोध
From जैनकोष
== सिद्धांतकोष से ==
- क्रोध का लक्षण
राजवार्तिक/8/9/5/574/28 स्वपरोपघातनिरनुग्रहाहितक्रौर्यपरिणामोऽमर्ष: क्रोध:। स च चतु:प्रकार:-पर्वत-पृथ्वी–वालुका-उदकराजितुल्य:।=अपने और पर के उपघात या अनुपकार आदि करने के क्रूर परिणाम क्रोध हैं। वह पर्वतरेखा, पृथ्वीरेखा, धूलिरेखा और जलरेखा के समान चार प्रकार का है।
धवला 6/1,9,1,23/41/4 क्रोधो रोष: संरंभ इत्यनर्थांतरम् ।=क्रोध, रोष और संरंभ इनके अर्थ में कोई अंतर नहीं है। ( धवला 1/1,1,111/349/6 ) धवला 12/4,2,8,8/283/6 हृदयदाहांगकंपाक्षिरागेंद्रियापाटवादि निमित्तजीवपरिणाम: क्रोध:।=हृदयदाह, अंगकंप, नेत्ररक्तता और इंद्रियों की अपटुता आदि के निमित्तभूत जीव के परिणाम को क्रोध कहा जाता है।
समयसार / तात्पर्यवृत्ति/199/274/12 शांतात्मतत्त्वात्पृथग्भूत एष अक्षमारूपो भाव: क्रोध:।=शांतात्मा से पृथग्भूत यह जो क्षमा रहित भाव है वह क्रोध है। द्रव्यसंग्रह टीका/30/88/7 अभ्यंतरे परमोपशममूर्तिकेवलज्ञानाद्यनंतगुणस्वभावपरमात्मस्वरूपक्षोभकारका: बहिर्विषये तु परेषां संबंधित्वेन क्रूरत्वाद्यावेशरूपा: क्रोध...।=अंतरंग में परम-उपशम-मूर्ति केवलज्ञानादि अनंत, गुणस्वभाव परमात्मरूप में क्षोभ उत्पन्न करने वाले तथा बाह्य विषय में अन्य पदार्थों के संबंध से क्रूरता आवेश रूप क्रोध...।
- आहार का एक दोष–देखें आहार - II.4।
- वस्तिका का एक दोष–देखें वस्तिका ।
पुराणकोष से
(1) चार कषायों में प्रथम कषाय । यह संसार का कारण है और क्षमा से यह शांत होता है । महापुराण 36.129, पद्मपुराण 14. 110-111
(2) रत्नत्रय रूपी धन का तस्कर । सत्य व्रत की पाँच भावनाओं में प्रथम भावना-क्रोध का त्याग । महापुराण 20. 162, 36.139
(3) भरत के साथ दीक्षित एक नृप । पद्मपुराण 88.1-5