ग्रन्थ:सूत्रपाहुड़ गाथा 16
From जैनकोष
एएण कारणेण य तं अप्पा सद्दहेह तिविहेण ।
जेण य लहेह मोक्खं तं जाणिज्जह पयत्तेण ॥१६॥
एतेन कारणेन च तं आत्मानं श्रद्धत्त त्रिविधेन ।
येन च लभध्वं मोक्षं तं जानीत प्रयत्नेन ॥१६॥
आगे इस ही अर्थ को दृढ़ करके उपदेश करते हैं -
अर्थ - पहिले कहा कि जो आत्मा को इष्ट नहीं करता है उसके सिद्धि नहीं है, इस ही कारण से हे भव्यजीवो ! तुम उस आत्मा की श्रद्धा करो, उसका श्रद्धान करो, मन वचन काय से स्वरूप में रुचि करो, इसकारण से मोक्ष को पाओ और जिससे मोक्ष पाते हैं उसको प्रयत्न द्वारा सब प्रकार के उद्यम करके जानो । (भावपाहुड गाथा ८७ में भी यह बात है ।)
भावार्थ - - जिससे मोक्ष पाते हैं, उस ही को जानना, श्रद्धान करना यह प्रधान उपदेश है, अन्य आडम्बर से क्या प्रयोजन ? इसप्रकार जानना ॥१६॥