वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 9-13
From जैनकोष
ज्ञानावरणे प्रजाज्ञाने ।। 9-13 ।।
ज्ञानावरण के उदय में प्रज्ञापरीषह व अज्ञानपरीषह की संभवता―प्रज्ञापरीषह और अज्ञानपरीषह ज्ञानावरण के उदय से होते हैं । प्रज्ञा तो ज्ञानावरण के क्षयोपशम से बनती है, पर जो ज्ञानावरण का और उदय है उसमें घमंड उत्पन्न हो जाता है । जहाँ समस्त ज्ञानावरण का क्षय हो जाये वहाँ मद नहीं होता । सो यों प्रज्ञा परीषह भी ज्ञानावरण के उदय से कहा गया है और अज्ञानपरीषह तो स्पष्टतया ज्ञानावरण के उदय से होता है । उसमें तो कोई शंका ही नहीं है । मोहनीय कर्म के अनेक भेद हैं और उनका कार्य है सम्यग्दर्शन और चारित्र आदिक का नाश करना । तो जहाँ यह ज्ञान मद हुआ कि मैं बड़ा विद्वान हूँ सो कुछ बुद्धि मिलने पर ही तो ऐसा घमंड कर सका, सो उसे यहाँ मोह का कार्य न बताकर ज्ञानावरण का कार्य कहा गया है, और दूसरा कारण यह है कि चारित्र वाले के भी प्रज्ञा परीषह होता है । जिनके संयम है, चारित है उन्हें भी इस ज्ञानावरण का क्षयोपशम होने से प्रज्ञा मिली और कुछ ज्ञानावरण के उदय के कारण उस अज्ञान स्थिति में घमंड बना, सो यों प्रज्ञापरीषह ज्ञानावरण के उदय से कहा गया है । यदि चारित्र मोह के उदय से प्रज्ञा परीषह कहा जाये तो चारित्रवान के प्रज्ञा परीषह कैसे हो सकेगा? सो ये दोनों परीषह ज्ञानावरण कर्म के उदय से बताये गए हैं ।