वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 5-28
From जैनकोष
भेदसंघाताभ्यां चाक्षुष: ।। 5-28 ।।
अचाक्षुष स्कंध से चाक्षुष स्कंध की निष्पत्ति का विधान―पहले जो 3 बातें कही गई थीं कि स्कंध भेद से होता है, भेद संघात से होता है और संघात से होता है तो उनमें कोई आँख से दिखने वाला स्कंध है और उसका भेद हो गया तो भेद हो जाने पर यह नहीं कहा जा सकता कि वह भेद किया गया स्कंध भी आँखों से दिख ही जायेगा । दिख भी जाये ऐसा भी हो सके और न दिखे ऐसा भी हो सके । कोई अचाक्षुष स्कंध है जो आंखों से नहीं दिख सकता । उसके भेद होने पर स्कंध तो रहा आयेगा, पर वह दिखेगा ही नहीं । यहाँ यह जानकारी कराई जा रही है कि कोई स्कंध चाहे वह अनंत परमाणुओं के समूह से भी बना हुआ है, यदि अचाक्षुष है तो वह चाक्षुष कैसे हो सकता है? उसके यहाँ दो कारण बताये गये । जो भी अचाक्षुष स्कंध भेदसंघात और संघात से होता है, केवल भेद से नहीं होता । कोई स्कंध इतने छोटे हैं कि वे आँखों से दिखते ही नहीं हैं । तो उसके भेद करने से तो और भी छोटे हो जायेंगे । आंखों से कैसे दिखेंगे? इस कारण अचाक्षुष स्कंध सिर्फ भेद पूर्वक संघात होने से अथवा संघात होने से ही चाक्षुष हो सकता है । अब यहाँ एक स्मरण के साथ जिज्ञासा होती है कि पहले तो यह बताओ कि सभी द्रव्यों का उपकार कैसे होता है? गति स्थिति, अवगाह, वर्तना शरीरादिक परस्पर जैसे उपकार के द्वारा अनुमान किया गया था, उन द्रव्यों का लक्षण क्या है? वे द्रव्य हैं यह कैसे निश्चित होता है । उसके उत्तर में कहते हैं―