वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 7-36
From जैनकोष
सचित्तनिक्षेपापिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमा: ।।7-36।।
(208) अतिथिसंविभागशिक्षाव्रत नामक शील के अतिचार―अतिथिसम्विभागव्रत के 5 अतिचार इस प्रकार है―[1] सचित्तनिक्षेप―सचित्त कमल के पत्र आदिक पर भोजन का रख देना सचित्त निक्षेप है । सचित्त पदार्थ है याने हरे पत्ता आदिक पर प्रासुप भोजन का रख देना यह अतिथिसम्विभाग व्रत का क्यों अतिचार है? उसका कारण यह है कि किसी गृहस्थ के मन में यह भाव आ सकता है कि यह अनिष्ट चीज यदि सचित्त पत्ते पर रख दी जाये तो वह फिर पात्र को देने लायक न रहेगा और घर में उसका उपयोग हो जायेगा । तो भावों में मलिनता इस ढंग की आये तो वह अतिथिसम्विभाग व्रत का अतिचार है अथवा अजानकारी हो या उलायत हो और सचित्तपत्र पर रख दिया जाये तो वह अतिथिसम्विभाग व्रत में दी जाने पर दोष कहलाता है । [2] सचित्ताविद्यान―सचित्त कहते हैं हरे पत्ते आदिक को और अविद्यान कहते हैं ढकने को । भोजन तो शुद्ध प्रासुप हम, पर उसे हरे पत्ते आदिक से ढक दें तो वह अतिथि को देने लायक नहीं रहता । तो इसमें भी सचित्तनिक्षेप की तरह दोष आता है । [3] परव्यपदेश―दूसरे के नाम के बहाने देना, इसका दाता दूसरी जगह है, यह देय पदार्थ अमुक व्यक्ति का है, यह तो लेना ही है, इस तरह दूसरे का बहाना करके देना परव्यपदेश कहलाता है । ऐसा करने में थोड़ा मन में पात्र को भले प्रकार खिलाने के लिए कुछ छल का अंश आता है, इस कारण दोष है । [4] मात्सर्य―दान दिया जा रहा है तो भी आदर के बिना अथवा किसी को मात्सर्य करके दान देना यह चतुर्थ अतिचार है । इसमें दाता को यह मात्सर्य हुआ । अपना नाम कीर्ति बढ़ाने के लिए कि मैंने दूसरे से कम बार आहार नहीं दिया अथवा दूसरे से ज्यादा बार आहार दिया―इस प्रकार मात्सर्यवश आहार दान देना यह मात्सर्य नाम का अतिचार है । [5] कालातिक्रम―भोजन योग्य समय को टालकर अकाल में भोजन देना यह कालातिक्रम है अथवा श्रावकों के ऐसा नियम रहा करता है कि मैं प्रत्येक अमुक तिथि को आहारदान करूँगा और कदाचित् सुन रखा कि इस तिथि के एक दिन बाद पात्र सत्संग मिलेगा अथवा उससे पहले पात्र के विहार करने का समाचार मिला तो नियत दान देने की तिथि से पहले या बाद में दान करे, उस नियत तिथि के एवज में यह कालातिक्रम रहता है । इस प्रकार 5 अतिथिसम्विभाग व्रत के अतिचार कहे गए हैं । यहाँ तक 7 शीलों के अतिचार भी कहे जा चुके । इस तरह 5 व्रत एक सम्यग्दर्शन और 7 शील यों 13 प्रकार के नियमों के अतिचार कहे गए हैं । अब सल्लेखना व्रत के अतिचार कहते हैं ।