अंगोपांग: Difference between revisions
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<span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/11/389</span> <p class="SanskritText">यदुदपादंगोपांगविवेकस्तदंगोपांगनाम। </p> | |||
<p class="HindiText">= जिसके उदय से अंगोपांग का भेद होता है वह अंगोपांग नाम कर्म है।</p> | <p class="HindiText">= जिसके उदय से अंगोपांग का भेद होता है वह अंगोपांग नाम कर्म है।</p> | ||
<span class="GRef">धवला पुस्तक 6/1,9-1,28/54/2</span><p class="PrakritText"> जस्स कम्मखंधस्सुदएण सरीरस्संगोवंगणिप्फत्ती होज्ज तस्स कम्मक्खंधस्स सरीरअंगोवंगणाम। </p> | |||
<p class="HindiText">= जिस कर्म स्कंध के उदय से शरीर के अंग और उपांगों की निष्पत्ति होती है, उस कर्म स्कंध का शरीरांगोपांग यह नाम है। </p> | <p class="HindiText">= जिस कर्म स्कंध के उदय से शरीर के अंग और उपांगों की निष्पत्ति होती है, उस कर्म स्कंध का शरीरांगोपांग यह नाम है। </p> | ||
<p>(<span class="GRef"> धवला पुस्तक 13/5,5,101/364/4</span>) ( <span class="GRef">गोम्मट्टसार जीवकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29/5</span>)</p> | <p>(<span class="GRef"> धवला पुस्तक 13/5,5,101/364/4</span>) ( <span class="GRef">गोम्मट्टसार जीवकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29/5</span>)</p> | ||
<p>2. अंगोपांग नामकर्म के भेद</ | <p class="HindiText"><strong>2. अंगोपांग नामकर्म के भेद</strong></p> | ||
<p | <span class="GRef">षट्खंडागम पुस्तक 6/1,9-1/सूत्र 35/72</span><p class="PrakritText"> जं सरीरअंगोवंगणामकम्मं तं तिविहं ओरालियसरीरअंगोवगणामं वेउव्वियसरीरअंगोवंगणामं, आहारसरीरअंगोवंगणामं चेदि ॥ 35 ॥ </p> | ||
<p class="HindiText">= अंगोपांग नामकर्म तीन प्रकार का है - औदारिक शरीर अंगोपांग नामकर्म, वैक्रियक शरीर अंगोपांग नामकर्म और आहारक शरीर अंगोपांग नामकर्म। </p> | <p class="HindiText">= अंगोपांग नामकर्म तीन प्रकार का है - औदारिक शरीर अंगोपांग नामकर्म, वैक्रियक शरीर अंगोपांग नामकर्म और आहारक शरीर अंगोपांग नामकर्म। </p> | ||
<p>( <span class="GRef">षट्खंडागम पुस्तक 13/5,5/ सूत्र 109/369</span>) (<span class="GRef">पंचसंग्रह / प्राकृत / अधिकार 2/4/47</span>) ( <span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/11/389</span>) (<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 8/11/4/576/19</span>) ( <span class="GRef">गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 27/22</span>); ( <span class="GRef">गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29</span>)</p> | <p class="HindiText">( <span class="GRef">षट्खंडागम पुस्तक 13/5,5/ सूत्र 109/369</span>) (<span class="GRef">पंचसंग्रह / प्राकृत / अधिकार 2/4/47</span>) ( <span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/11/389</span>) (<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 8/11/4/576/19</span>) ( <span class="GRef">गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 27/22</span>); ( <span class="GRef">गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29</span>)</p> | ||
<p>• अंगोपांग प्रकृति की बंध, उदय, सत्त्व प्ररूपणाएँ व तत्संबंधी नियमादि - देखें [[बंध ]] [[उदय ]]; [[ सत्त्व ]] ।</p> | <p class="HindiText">• अंगोपांग प्रकृति की बंध, उदय, सत्त्व प्ररूपणाएँ व तत्संबंधी नियमादि - देखें [[बंध ]] [[उदय ]]; [[ सत्त्व ]] ।</p> | ||
<p>3. शरीर के अंगोपांगों के नाम निर्देश</ | <p class="HindiText"><strong>3. शरीर के अंगोपांगों के नाम निर्देश</strong></p> | ||
<p | <span class="GRef">पंचसंग्रह / प्राकृत / अधिकार /1/16</span><p class="PrakritText"> णलयाबाहू य तहा णियंवपुट्ठी उरो य सीसं च। अट्ठे व दु अंगाइं देहण्णाइं उवंगाइं ॥ 10 ॥ </p> | ||
<p class="HindiText">= शरीर में दो हाथ, दो पैर, नितंब (कमर के पीछे का भाग), पीठ, हृदय, और मस्तक ये आठ अंग होते हैं। इनके सिवाय अन्य (नाक, कान, आँख आदि) उपांग होते हैं। </p> | <p class="HindiText">= शरीर में दो हाथ, दो पैर, नितंब (कमर के पीछे का भाग), पीठ, हृदय, और मस्तक ये आठ अंग होते हैं। इनके सिवाय अन्य (नाक, कान, आँख आदि) उपांग होते हैं। </p> | ||
<p>( <span class="GRef">धवला पुस्तक 6/1,9-1,28/गाथा 10/54</span>) ( <span class="GRef">गोम्मट्टसार जीवकांड / मूल गाथा 28</span>)</p> | <p class="HindiText">( <span class="GRef">धवला पुस्तक 6/1,9-1,28/गाथा 10/54</span>) ( <span class="GRef">गोम्मट्टसार जीवकांड / मूल गाथा 28</span>)</p> | ||
धवला पुस्तक 6/1,9-1,28/54/7</span><p class="SanskritText"> शिरसि तावदुपांगानि मूर्द्ध-करोटि-मस्तक-ललाट-शंख-भ्र-कर्ण-नासिका-नयनाक्षिकूट-हनु-कपोल-उत्तराधरोष्ठ-सृक्वणी-तालु-जिह्वादीनि। </p> | |||
<p class="HindiText">= शिर में मूर्धा, कपाल, मस्तक, ललाट, शंख, भौंह, कान, नाक, आँख, अक्षिकूट, हनु (ठुड्डी), कपोल, ऊपर और नीचे के ओष्ठ, सृक्वणी (चाप), तालु और जीभ आदि उपांग होते हैं।</p> | <p class="HindiText">= शिर में मूर्धा, कपाल, मस्तक, ललाट, शंख, भौंह, कान, नाक, आँख, अक्षिकूट, हनु (ठुड्डी), कपोल, ऊपर और नीचे के ओष्ठ, सृक्वणी (चाप), तालु और जीभ आदि उपांग होते हैं।</p> | ||
<p>• एकेंद्रियों में अंगोपांग नहीं होते व तत्संबंधी शंका - देखें [[ उदय#5 | उदय - 5]]।</p> | <p class="HindiText">• एकेंद्रियों में अंगोपांग नहीं होते व तत्संबंधी शंका - देखें [[ उदय#5 | उदय - 5]]।</p> | ||
<p>• हीनाधिक अंगोपांगवाला व्यक्ति प्रवज्या के अयोग्य है - देखें [[ प्रव्रज्या ]]।</p> | <p class="HindiText">• हीनाधिक अंगोपांगवाला व्यक्ति प्रवज्या के अयोग्य है - देखें [[ प्रव्रज्या ]]।</p> | ||
Revision as of 14:55, 7 December 2022
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/11/389
यदुदपादंगोपांगविवेकस्तदंगोपांगनाम।
= जिसके उदय से अंगोपांग का भेद होता है वह अंगोपांग नाम कर्म है।
धवला पुस्तक 6/1,9-1,28/54/2
जस्स कम्मखंधस्सुदएण सरीरस्संगोवंगणिप्फत्ती होज्ज तस्स कम्मक्खंधस्स सरीरअंगोवंगणाम।
= जिस कर्म स्कंध के उदय से शरीर के अंग और उपांगों की निष्पत्ति होती है, उस कर्म स्कंध का शरीरांगोपांग यह नाम है।
( धवला पुस्तक 13/5,5,101/364/4) ( गोम्मट्टसार जीवकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29/5)
2. अंगोपांग नामकर्म के भेद
षट्खंडागम पुस्तक 6/1,9-1/सूत्र 35/72
जं सरीरअंगोवंगणामकम्मं तं तिविहं ओरालियसरीरअंगोवगणामं वेउव्वियसरीरअंगोवंगणामं, आहारसरीरअंगोवंगणामं चेदि ॥ 35 ॥
= अंगोपांग नामकर्म तीन प्रकार का है - औदारिक शरीर अंगोपांग नामकर्म, वैक्रियक शरीर अंगोपांग नामकर्म और आहारक शरीर अंगोपांग नामकर्म।
( षट्खंडागम पुस्तक 13/5,5/ सूत्र 109/369) (पंचसंग्रह / प्राकृत / अधिकार 2/4/47) ( सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/11/389) (राजवार्तिक अध्याय 8/11/4/576/19) ( गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 27/22); ( गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29)
• अंगोपांग प्रकृति की बंध, उदय, सत्त्व प्ररूपणाएँ व तत्संबंधी नियमादि - देखें बंध उदय ; सत्त्व ।
3. शरीर के अंगोपांगों के नाम निर्देश
पंचसंग्रह / प्राकृत / अधिकार /1/16
णलयाबाहू य तहा णियंवपुट्ठी उरो य सीसं च। अट्ठे व दु अंगाइं देहण्णाइं उवंगाइं ॥ 10 ॥
= शरीर में दो हाथ, दो पैर, नितंब (कमर के पीछे का भाग), पीठ, हृदय, और मस्तक ये आठ अंग होते हैं। इनके सिवाय अन्य (नाक, कान, आँख आदि) उपांग होते हैं।
( धवला पुस्तक 6/1,9-1,28/गाथा 10/54) ( गोम्मट्टसार जीवकांड / मूल गाथा 28)
धवला पुस्तक 6/1,9-1,28/54/7
शिरसि तावदुपांगानि मूर्द्ध-करोटि-मस्तक-ललाट-शंख-भ्र-कर्ण-नासिका-नयनाक्षिकूट-हनु-कपोल-उत्तराधरोष्ठ-सृक्वणी-तालु-जिह्वादीनि।
= शिर में मूर्धा, कपाल, मस्तक, ललाट, शंख, भौंह, कान, नाक, आँख, अक्षिकूट, हनु (ठुड्डी), कपोल, ऊपर और नीचे के ओष्ठ, सृक्वणी (चाप), तालु और जीभ आदि उपांग होते हैं।
• एकेंद्रियों में अंगोपांग नहीं होते व तत्संबंधी शंका - देखें उदय - 5।
• हीनाधिक अंगोपांगवाला व्यक्ति प्रवज्या के अयोग्य है - देखें प्रव्रज्या ।