अंतकृत्: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
[[धवला]] पुस्तक संख्या ६/१,९-९,२१६/४९०/१ अष्टकर्मणामन्तं विनाशं कुर्वन्तीति अन्तकृतः। अन्तकृतो भूत्वा सिज्झंति सिद्ध्यन्ति निस्तिष्ठन्ति निष्पद्यन्ते स्वरूपेणेत्यर्थः। बुज्झंति त्रिकालगोचरानन्तार्थव्यञ्जनपरिणामात्मकाशेषवस्तुतत्त्वं बुद्ध्यन्ति अवगच्छन्तीत्यर्थः। < | <p class="SanskritPrakritSentence">[[धवला]] पुस्तक संख्या ६/१,९-९,२१६/४९०/१ अष्टकर्मणामन्तं विनाशं कुर्वन्तीति अन्तकृतः। अन्तकृतो भूत्वा सिज्झंति सिद्ध्यन्ति निस्तिष्ठन्ति निष्पद्यन्ते स्वरूपेणेत्यर्थः। बुज्झंति त्रिकालगोचरानन्तार्थव्यञ्जनपरिणामात्मकाशेषवस्तुतत्त्वं बुद्ध्यन्ति अवगच्छन्तीत्यर्थः। </p> | ||
<p class="HindiSentence">= जो आठ कर्मों का अन्त अर्थात् विनाश करते हैं वे अन्तकृत् कहलाते हैं। अन्तकृत् होकर सिद्ध होते हैं, निष्ठित होते हैं व अपने स्वरूप से निष्पन्न होते हैं, ऐसा अर्थ जानना चाहिए। `जानते हैं, अर्थात् त्रिकालगोचर अनन्त अर्थ और व्यञ्जन पर्यायात्मक अशेष वस्तु तत्त्व को जानते व समझते हैं'।</p> | <p class="HindiSentence">= जो आठ कर्मों का अन्त अर्थात् विनाश करते हैं वे अन्तकृत् कहलाते हैं। अन्तकृत् होकर सिद्ध होते हैं, निष्ठित होते हैं व अपने स्वरूप से निष्पन्न होते हैं, ऐसा अर्थ जानना चाहिए। `जानते हैं, अर्थात् त्रिकालगोचर अनन्त अर्थ और व्यञ्जन पर्यायात्मक अशेष वस्तु तत्त्व को जानते व समझते हैं'।</p> | ||
[[Category:अ]] | [[Category:अ]] | ||
[[Category:धवला]] | [[Category:धवला]] |
Revision as of 11:40, 24 May 2009
धवला पुस्तक संख्या ६/१,९-९,२१६/४९०/१ अष्टकर्मणामन्तं विनाशं कुर्वन्तीति अन्तकृतः। अन्तकृतो भूत्वा सिज्झंति सिद्ध्यन्ति निस्तिष्ठन्ति निष्पद्यन्ते स्वरूपेणेत्यर्थः। बुज्झंति त्रिकालगोचरानन्तार्थव्यञ्जनपरिणामात्मकाशेषवस्तुतत्त्वं बुद्ध्यन्ति अवगच्छन्तीत्यर्थः।
= जो आठ कर्मों का अन्त अर्थात् विनाश करते हैं वे अन्तकृत् कहलाते हैं। अन्तकृत् होकर सिद्ध होते हैं, निष्ठित होते हैं व अपने स्वरूप से निष्पन्न होते हैं, ऐसा अर्थ जानना चाहिए। `जानते हैं, अर्थात् त्रिकालगोचर अनन्त अर्थ और व्यञ्जन पर्यायात्मक अशेष वस्तु तत्त्व को जानते व समझते हैं'।