आतमरूप सुहावना, कोई जानै रे भाई ।: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: आतमरूप सुहावना, कोई जानै रे भाई ।<br> जाके जानत पाइये, त्रिभुवन ठकुराई .........<b...) |
No edit summary |
||
Line 14: | Line 14: | ||
[[Category:Bhajan]] | [[Category:Bhajan]] | ||
[[Category:द्यानतरायजी]] | [[Category:द्यानतरायजी]] | ||
[[Category:आध्यात्मिक भक्ति]] |
Latest revision as of 01:52, 16 February 2008
आतमरूप सुहावना, कोई जानै रे भाई ।
जाके जानत पाइये, त्रिभुवन ठकुराई .........
मन इन्द्री न्यारे करौ, मन और विचारौ ।
विषय विकार सबै मिटैं, सहजैं सुख धारौ ।।आतम. ।।१ ।।
वाहिरतैं मन रोककैं, जब अन्तर आया ।
चित्त कमल सुलट्यो तहाँ, चिनमूरति पाया ।।आतम. ।।२ ।।
पूरक कुंभक रेचतैं, पहिलैं मन साधा ।
ज्ञान पवन मन एकता, भई सिद्ध समाधा ।।आतम. ।।३ ।।
जिनि इहि विध मन वश किया, तिन आतम देखा ।
`द्यानत' मौनी व्है रहे, पाई सुखरेखा ।।आतम. ।।४ ।।