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[[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या १/११/१/५२ अयमादिशब्दोऽनेकार्थवृत्तिः। क्वचित्प्राथम्ये वर्तते `अकारादयो वर्णाः, ऋषभादयस्तीर्थंकराः' इति। क्वचित्प्रकारे, भुजङ्गादयः परिहर्तव्याः इति। क्वचिद्व्यवस्थायाम् `सर्वादि सर्वनाम' इति। क्वचित्सामीप्ये `नद्यादीनि क्षेत्राणि' इति। क्वचिदवयवे `टिदादिः' इति, अथवा `ब्राह्मणादिचत्वारो वर्णाः' इति।<br>([[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या १/३०/२/९०)।<br>= `आदि' शब्दका अनेक अर्थोंमें प्रयोग होता है। १. कहीं तो `प्रथम' के अर्थमें प्रयुक्त होता है जैसे अकारादि वर्ण या ऋषभादि तीर्थँकर। २. कहीं `प्रकार'के अर्थमें प्रयुक्त होता है जैसे भुजङ्गादि त्याज्य हैं। कहीं व्यवस्थाके अर्थमें प्रयुक्त होता है जैसे-`सर्वादि सर्वनाम' इस व्याकरण सूत्रसे विदित है। ४. कहीं समिप्यके अर्थमें आता है जैसे-नदी आदिक क्षेत्र। ५. कहीं अवयवके अर्थमें आता है जैसे `टिदादि' यह व्याकरण सूत्र (अथवा ब्राह्मणादि चार वर्ण) ([[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या १/३०/२/९०)। ६. मुख अर्थात् First term; Head of quadrant or first dogit in numer cal series- <br>(विशेष | [[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या १/११/१/५२ अयमादिशब्दोऽनेकार्थवृत्तिः। क्वचित्प्राथम्ये वर्तते `अकारादयो वर्णाः, ऋषभादयस्तीर्थंकराः' इति। क्वचित्प्रकारे, भुजङ्गादयः परिहर्तव्याः इति। क्वचिद्व्यवस्थायाम् `सर्वादि सर्वनाम' इति। क्वचित्सामीप्ये `नद्यादीनि क्षेत्राणि' इति। क्वचिदवयवे `टिदादिः' इति, अथवा `ब्राह्मणादिचत्वारो वर्णाः' इति।<br>([[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या १/३०/२/९०)।<br>= `आदि' शब्दका अनेक अर्थोंमें प्रयोग होता है। १. कहीं तो `प्रथम' के अर्थमें प्रयुक्त होता है जैसे अकारादि वर्ण या ऋषभादि तीर्थँकर। २. कहीं `प्रकार'के अर्थमें प्रयुक्त होता है जैसे भुजङ्गादि त्याज्य हैं। कहीं व्यवस्थाके अर्थमें प्रयुक्त होता है जैसे-`सर्वादि सर्वनाम' इस व्याकरण सूत्रसे विदित है। ४. कहीं समिप्यके अर्थमें आता है जैसे-नदी आदिक क्षेत्र। ५. कहीं अवयवके अर्थमें आता है जैसे `टिदादि' यह व्याकरण सूत्र (अथवा ब्राह्मणादि चार वर्ण) ([[राजवार्तिक | राजवार्तिक]] अध्याय संख्या १/३०/२/९०)। ६. मुख अर्थात् First term; Head of quadrant or first dogit in numer cal series- <br>(विशेष <b>देखे </b>[[गणित]] II/५/३)<br>• सादि अनादि विषयक - <b>देखे </b>[[अनादि]] ।<br>[[Category:आ]] <br>[[Category:राजवार्तिक]] <br> |
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राजवार्तिक अध्याय संख्या १/११/१/५२ अयमादिशब्दोऽनेकार्थवृत्तिः। क्वचित्प्राथम्ये वर्तते `अकारादयो वर्णाः, ऋषभादयस्तीर्थंकराः' इति। क्वचित्प्रकारे, भुजङ्गादयः परिहर्तव्याः इति। क्वचिद्व्यवस्थायाम् `सर्वादि सर्वनाम' इति। क्वचित्सामीप्ये `नद्यादीनि क्षेत्राणि' इति। क्वचिदवयवे `टिदादिः' इति, अथवा `ब्राह्मणादिचत्वारो वर्णाः' इति।
( राजवार्तिक अध्याय संख्या १/३०/२/९०)।
= `आदि' शब्दका अनेक अर्थोंमें प्रयोग होता है। १. कहीं तो `प्रथम' के अर्थमें प्रयुक्त होता है जैसे अकारादि वर्ण या ऋषभादि तीर्थँकर। २. कहीं `प्रकार'के अर्थमें प्रयुक्त होता है जैसे भुजङ्गादि त्याज्य हैं। कहीं व्यवस्थाके अर्थमें प्रयुक्त होता है जैसे-`सर्वादि सर्वनाम' इस व्याकरण सूत्रसे विदित है। ४. कहीं समिप्यके अर्थमें आता है जैसे-नदी आदिक क्षेत्र। ५. कहीं अवयवके अर्थमें आता है जैसे `टिदादि' यह व्याकरण सूत्र (अथवा ब्राह्मणादि चार वर्ण) ( राजवार्तिक अध्याय संख्या १/३०/२/९०)। ६. मुख अर्थात् First term; Head of quadrant or first dogit in numer cal series-
(विशेष देखे गणित II/५/३)
• सादि अनादि विषयक - देखे अनादि ।