आवश्यकापरिहाणि: Difference between revisions
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<p>2. एक आवश्यकापरिहाणिमें शेष 15 भावोंका समावेश</p> | <p>2. एक आवश्यकापरिहाणिमें शेष 15 भावोंका समावेश</p> | ||
<p class="SanskritText">धवला पुस्तक 8/3,41/85/4 तीए आवासयापरिहीणदाए एक्काए वि तित्थयरणामकमस्स बंधो होदि। ण च एत्थ सेसकारणाणामभावो ण च, दंसणविसुद्दि (आदि) ...विणा छावासएसु णिरदिचारदा णाम संभवदि। तम्हा एदं तित्थयरणामकम्मबंधस्स चउत्थकारणं।</p> | <p class="SanskritText">धवला पुस्तक 8/3,41/85/4 तीए आवासयापरिहीणदाए एक्काए वि तित्थयरणामकमस्स बंधो होदि। ण च एत्थ सेसकारणाणामभावो ण च, दंसणविसुद्दि (आदि) ...विणा छावासएसु णिरदिचारदा णाम संभवदि। तम्हा एदं तित्थयरणामकम्मबंधस्स चउत्थकारणं।</p> | ||
<p class="HindiText">= उस एक ही आवश्यकापरिहीनतासे तीर्थंकर नामकर्मका | <p class="HindiText">= उस एक ही आवश्यकापरिहीनतासे तीर्थंकर नामकर्मका बंध होता है। इसमें शेष कारणोंका अभाव भी नहीं हैं, क्योंकि दर्शनविशुद्धि (आदि) ...के बिना छह आवश्यकोंमें निरतिचारता समभव ही नहीं है।</p> | ||
<p>3. अन्य | <p>3. अन्य संबंधित विषय</p> | ||
<p>• एक आवश्यकापरिहाणिसे ही तीर्थंकरत्वका | <p>• एक आवश्यकापरिहाणिसे ही तीर्थंकरत्वका बंध संभव है - देखें [[ भावना#2 | भावना - 2]]</p> | ||
<p>• साधुको आवश्यक कर्म नित्य करनेका उपदेश - देखें [[ कृतिकर्म#2 | कृतिकर्म - 2]]</p> | <p>• साधुको आवश्यक कर्म नित्य करनेका उपदेश - देखें [[ कृतिकर्म#2 | कृतिकर्म - 2]]</p> | ||
<p>• श्रावकको आवश्यककर्म नित्य करनेका उपदेश - देखें [[ श्रावक#4 | श्रावक - 4]]</p> | <p>• श्रावकको आवश्यककर्म नित्य करनेका उपदेश - देखें [[ श्रावक#4 | श्रावक - 4]]</p> |
Revision as of 16:19, 19 August 2020
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 6/24/339/4 षण्मामावश्यकक्रियाणां यथाकालप्रवर्तमानवश्यकापरिहाणि।
= छहा आवश्यक क्रियाओंका (बिना नागा) यथा काल करना आवश्यकापरिहाणि है।
(राजवार्तिक अध्याय 6/24/11/530/15), ( धवला पुस्तक 8/3,41/85/3), ( चारित्रसार पृष्ठ 56/3); ( भावपाहुड़ / मूल या टीका गाथा 77)
2. एक आवश्यकापरिहाणिमें शेष 15 भावोंका समावेश
धवला पुस्तक 8/3,41/85/4 तीए आवासयापरिहीणदाए एक्काए वि तित्थयरणामकमस्स बंधो होदि। ण च एत्थ सेसकारणाणामभावो ण च, दंसणविसुद्दि (आदि) ...विणा छावासएसु णिरदिचारदा णाम संभवदि। तम्हा एदं तित्थयरणामकम्मबंधस्स चउत्थकारणं।
= उस एक ही आवश्यकापरिहीनतासे तीर्थंकर नामकर्मका बंध होता है। इसमें शेष कारणोंका अभाव भी नहीं हैं, क्योंकि दर्शनविशुद्धि (आदि) ...के बिना छह आवश्यकोंमें निरतिचारता समभव ही नहीं है।
3. अन्य संबंधित विषय
• एक आवश्यकापरिहाणिसे ही तीर्थंकरत्वका बंध संभव है - देखें भावना - 2
• साधुको आवश्यक कर्म नित्य करनेका उपदेश - देखें कृतिकर्म - 2
• श्रावकको आवश्यककर्म नित्य करनेका उपदेश - देखें श्रावक - 4
• साधुके दैनिक कार्यक्रम - देखें कृतिकर्म