उन्मिश्र: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: १. आहारका एक दोष-<b>देखे </b>आहार II/४/४; २. वस्तिकाका एक दोष-दे. वस्तिका।<br>[[Category:...) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(9 intermediate revisions by 4 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p class="HindiText"><b>1. आहार का एक दोष</b></p> | |||
<span class="GRef">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 472 </span><p class="PrakritText">`10 अशन दोष' - पुढवी आऊ य तहा हरिदा बीया तसा य सज्जीवा। पंचेहिं तेहिं मिस्सं आहारं होदि उम्मिस्सं ॥472॥ </p> | |||
<p class="HindiText">'''उन्मिश्र दोष''' - मिट्टी, अप्रासुक जल, पान-फूल, फल आदि हरी, जौ, गेहुँ आदि बीज, द्वींद्रियादिक त्रस जीव - इन पाँचों से मिला हुआ आहार देने से उन्मिश्र दोष होता है ॥472॥</p> | |||
<p class="HindiText">विशेष देखें [[ आहार#II.4.4 | आहार - II.4.4]]; </p> | |||
<p class="HindiText"><b>2. वस्तिकाका एक दोष</b></p> | |||
<span class="GRef"> भगवती आराधना / विजयोदया टीका/230/444/16 </span><span class="SanskritText">अथ एषणादोषांदश प्राह-.....स्थावरैः पृथिव्यादिभिः, त्रसैः पिपीलिकमत्कुणादिभिः सहितोन्मिश्रा । ..... इत्युच्यते ।</span> | |||
<p class="HindiText"> पृथिवी जल स्थावर जीवों से और चींटी खटमल वगैरह वगैरह त्रस जीवों से जो युक्त है, वह वसतिका '''उन्मिश्रदोष''' सहित समझना चाहिए ।</p> | |||
<p class="HindiText">-देखें [[ वस्तिका ]]।</p> | |||
<noinclude> | |||
[[ उन्मान | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ उन्मुंड | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: उ]] | |||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 13:27, 23 January 2023
1. आहार का एक दोष
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 472
`10 अशन दोष' - पुढवी आऊ य तहा हरिदा बीया तसा य सज्जीवा। पंचेहिं तेहिं मिस्सं आहारं होदि उम्मिस्सं ॥472॥
उन्मिश्र दोष - मिट्टी, अप्रासुक जल, पान-फूल, फल आदि हरी, जौ, गेहुँ आदि बीज, द्वींद्रियादिक त्रस जीव - इन पाँचों से मिला हुआ आहार देने से उन्मिश्र दोष होता है ॥472॥
विशेष देखें आहार - II.4.4;
2. वस्तिकाका एक दोष
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/230/444/16 अथ एषणादोषांदश प्राह-.....स्थावरैः पृथिव्यादिभिः, त्रसैः पिपीलिकमत्कुणादिभिः सहितोन्मिश्रा । ..... इत्युच्यते ।
पृथिवी जल स्थावर जीवों से और चींटी खटमल वगैरह वगैरह त्रस जीवों से जो युक्त है, वह वसतिका उन्मिश्रदोष सहित समझना चाहिए ।
-देखें वस्तिका ।