ज्ञानशुद्धि: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(3 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef">मूलाचार/गाथा सं.</span> <span class=" PrakritText ">.... ते लद्धणाण चक्खू णाणुज्जोएण दिट्ठपरमट्ठा। णिस्संकिदणिव्विदिणिंछादबलपरक्कमा साधू।828। उवलद्धपुण्णपावा जिणसासणगहितमुणिदपज्जाला। करचरणसंवुडंगा झाणुवजुत्ता मुणी होंति।835। ....</span> = | |||
<span class="HindiText">.... <strong>ज्ञानशुद्धि</strong>-जिन्होंने ज्ञान नेत्र पा लिया है, ऐसे साधु हैं, ज्ञानरूपी प्रकाश से जिन्होंने सब लोक का सार जान लिया है, पदार्थों में शंका रहित, अपने बल के समान जिनके पराक्रम हैं ऐसे साधु हैं।828। जिन्होंने पुण्य-पाप का स्वरूप जान लिया है, जिनमत में स्थित सब इंद्रियों का स्वरूप जिन्होंने जान लिया है, हाथ, पैर, कर से ही जिनका शरीर ढँका हुआ है और ध्यान में उद्यमी हैं।835। ....।</span><br> | |||
<span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें[[ शुद्धि#5| शुद्धि 5 ]]।</span> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 8: | Line 11: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: ज्ञ]] | [[Category: ज्ञ]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 17:14, 12 February 2024
मूलाचार/गाथा सं. .... ते लद्धणाण चक्खू णाणुज्जोएण दिट्ठपरमट्ठा। णिस्संकिदणिव्विदिणिंछादबलपरक्कमा साधू।828। उवलद्धपुण्णपावा जिणसासणगहितमुणिदपज्जाला। करचरणसंवुडंगा झाणुवजुत्ता मुणी होंति।835। .... =
.... ज्ञानशुद्धि-जिन्होंने ज्ञान नेत्र पा लिया है, ऐसे साधु हैं, ज्ञानरूपी प्रकाश से जिन्होंने सब लोक का सार जान लिया है, पदार्थों में शंका रहित, अपने बल के समान जिनके पराक्रम हैं ऐसे साधु हैं।828। जिन्होंने पुण्य-पाप का स्वरूप जान लिया है, जिनमत में स्थित सब इंद्रियों का स्वरूप जिन्होंने जान लिया है, हाथ, पैर, कर से ही जिनका शरीर ढँका हुआ है और ध्यान में उद्यमी हैं।835। ....।
अधिक जानकारी के लिये देखें शुद्धि 5 ।